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आँखों में आँसू भरकर माँ आती है दरवाजे तक
'खाना समय पर खाना' बस यही बोल पाती है।
रुधे गले से नही निकल पाते कुछ और शब्द
बस देखती रहती है आखों से ओझल होने तक
पापा आते हैं छोड़ने स्टेशन तक
पैसे देकर भी पूछते हैं "कम तो नही हैं ना"
सौ हिदायते देते हैं मगर नही देखते है मेरी आँखी में
छुपाते है आँसुओं को मुझसे पलट जाने तक
खड़े रहते हैं वहीं पर ट्रेन चलने तक
दर्द मुझे भी होता है घर छोड़ते हुए
आँसू मेरे भी बहते है माँ-पापा से दूर जाते हुए
गलत कहते है लोग लड़के नही रोते
रोता हू मैं भी फूट-फूटकर अकेले में
मगर जाना पड़ता है दूर पढ़ने के लिए
अपना हर शौक दबाया है उन्होंने मुझे काबिल बनाने के लिए
सब ख्वाब पूरे करने है मुझे अपने पापा के
जो देखे है उन्होंने मेरे बचपन से बड़े होने तक।