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क्या सुलझा सके वो पहेली को जिसने ना खेली होली हो,
वो सफलता ही क्या जिसमें खुदसे ना खुद की जंग लड़ी हो ,
फिर कहता! क्यों पल खुशी के साथ नहीं, हर कल में दुख की धारा है,
हंसता नहीं वो सयाना, क्यों उदासी ही उसका याराना है??
हार गया है खुदसे वो, ये उसका ही तो कर है,
दुनिया आड़े आती थी, फिर कहता हर कायर है।।
जी लो ज़िंदगी आज में, ना आता कभी हर कल है,
लहरों में ढूंढो खुशी को, दुख तो सागर का थल है।
बहती नदी की कलकल में देखे आता जब सूरज है,
फिर भी क्यों ना फहराए वो आज खुशी का ध्वज है??
पल पल में होती खुशी करता ये दिल इशारा है,
पर फिर भी क्यों उसने नाखुश रहना ही चाहा है??
हार गया है खुदसे वो, ये उसका ही तो कर है,
राहों में दुविधाएं थीं, फिर कहता हर कायर है।
क्यों ना देखे चांदनी जो चमकाती चंदा है,
हर मुश्किल में, हर दुख में वो बहाता फिर क्यों गंगा है??
चाहे ना चाहे, चाहत को उसने ही तो मारा है,
फिर कहता! चलता हूं सागर में पर मिलता नहीं किनारा है।
वो इंसान ही क्या जिसमें ना कोई आस्था न कोई आशा है,
सब कुछ पाकर भी जीवन में दिखती उसको निराशा है।
हार गया है खुदसे वो, ये उसका ही तो कर है,
छाया था किस्मत पर कोहरा, फिर कहता हर कायर है।