किन्नर, हिजड़ा, छक्का बोलने को यह शब्द बहुत मामूली सा है| परंतु यह किसी के स्वभाव को गहरी चोट पहुंचा रहा है| अक्सर लोगों को कहते सुना होगा और अपने खुद भी बोला होगा|
| परंतु ककभी सोचा है कि वे लोग अपनी जिंदगी में जीविका चलाने के लिए पहले से ही बहुत संघर्ष करते हैं और वह संघर्ष का मसला पेट भरने से लेकर इज्जत अपने तक का होता है| यह लोग हर किसी की खुशियों में शामिल होते हैं| अक्सर आम आदमी की तरह किसी को कटु वचन नहीं बोलते| जब भी मुंह खोलते हैं तो हमेशा हमारी खुशी के बारे में ही सोचते हैं| परंतु हम लोग इतने बीके हुए हैं कि उनके आशीर्वाद देने पर भी सोचते हैं कि यह सब रुपए मांगने का तरीका है|
परंतु कभी सोचा है कि भगवान का दिया आशीर्वाद और उनके द्वारा दिया गया आशीर्वाद एक समान ही है| हमारे समाज में तीन तरह के लिंग है- अर्थात पुल्लिंग स्त्रीलिंग और नपुंसकलिंग| नपुंसकलिंग का अर्थ है, साक्षात शिव भगवान और पार्वती माता का रूप | सामान शब्दों में कहे तो अर्धनारीश्वर | भगवान ही हमारे समाज साथ इस रूप में रह रहे हैं| परंतु हमारा समाज इतना दोगला है कि भगवान की मूर्ति को तो बहुत अधिक इज्जत , मान-सम्मान देता है | परंतु जीते इंसान की अपेक्षा करता है| क्या यह गलत नहीं है?
यह समुदाय भी इंसान का ही रूप है| इन्हें भी हमारी तरह जिंदा रहने के लिए भोजन और सांस लेने की आवश्यकता होती है| जब भगवान ने इनमें कोई अंतर नहीं समझा तो हम यह भेदभाव पैदा करने वाले कौन आते हैं?
एक आम मनुष्य की लड़ाई तो सिर्फ बाहरी समाज के साथ होती है| परंतु उनकी लड़ाई तो परिवार से लेकर अपने समाज तक होती है |निम्न लिंग से संबंधित बच्चों का जीवन धरती पर रहते- रहते नरक के समान हो जाता है| परिवार रिश्तेदार पड़ोसी एवं दोस्त कोई इन्हें अपनाने के लिए तैयार नहीं होता एवं कोई भी उनके स्वभाव को नहीं समझता| स्कूलों में निम्न लिंग से संबंधित जाने वाले बच्चों के साथ बुरा व्यवहार किया जाता है| उसमें उनके साथ पढ़ने वाले बच्चों के साथ-साथ अध्यापक भी शामिल होते हैं| इन्हें कहीं भी नहीं समझा जाता| कई राक्षस जैसे लोग इन बच्चों को अपनी हवस का शिकार भी बना डालते हैं |कुछ लोग उनके अलग स्वभाव को देखकर शर्मिंदगी महसूस करवाते हैं |कई परिवार जन के लोग तो इन बच्चों को अपने घर से निकाल देते हैं और इन्हें के जीते जीते इनका पिंडदान तक कर देते हैं| जिस कारण बहुत से बच्चे तो अब आत्महत्या भी कर लेते हैं और अंत में परिवार जनों को फिर अपनी गलती का एहसास होता है|
कोई भी निम्न वर्ग के लोगों को अपनी दुकान घर या कंपनी में कार्य पर नहीं रखता| तो अंत में इन्हें भीख मांग कर ही अपना गुजारा करना पड़ता है| एक बार उनकी जगह अपने आप को रख कर देखिए और सोचिए कि ऐसा अगर हमारे साथ हो तो हमे कैसा एहसास होता?
निम्न वर्ग के लोगों के भीख मांगने का असली कारण तो हम ही है क्योंकि हम इन्हें कभी भी रोजगार उपलब्ध नहीं करवाते एवं इन्हें कमाने का अवसर प्रदान ही नहीं करते| हमें भी सोचना चाहिए कि आखिर भूख तो भगवान ने हर किसी को दी है| भगवान ने भूख देते समय अमीर, गरीब, स्त्री, पुरुष एवं तीसरे वर्ग में भेदभाव नहीं किया|
इनको मूल भौतिक अधिकारों में भी भेदभाव किया जाता है| इनका जीवन खुद की इज्जत हासिल से लेकर अपने मूल भौतिक अधिकारों को पाने तक का हो जाता है और इन्हीं सभी में इनका आधा जीवन व्यतीत हो जाता है|
जब इन्हें सरकार ही समानता के नजर से नहीं देखेगी तो आम आदमी तो प्रताड़ना करेगा ही| 2014 तक किन्नर समाज की दुनिया में पहचान तक नहीं थी ना हीं राशन कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस और ना ही बच्चा गोद लेने, शादी करने और डाइवोर्स लेने का अधिकार था| इन्हें परिवार की जमीन जायदाद में से भी हिस्से की भागीदारी नहीं दी जाती थी| परंतु कुछ संघर्ष के बाद किन्नर समाज ने हक की लड़ाई लड़ी और खुद की पहचान की स्थापना करने की ठानी | तब जाकर सरकार ने अप्रैल 2014 में इन अधिकारों को स्वीकृति दी |
पहले सिर्फ कागजों में लिंग आधार पर स्त्री और पुरुष के ही स्तंभ उपलब्ध होते थे और इन्हें इन दोनों ही श्रेणी में नहीं रखता था | इसी वजह से इस समुदाय के लोग हर सुख सुविधाओं से वंचित रह जाते थे| परंतु तीसरे वर्ग के समुदाय ने सरकारी लड़ाई लड़ी और खुद की पहचान समाज के साथ-साथ लोकतंत्र में भी स्थापित की| किन्नर समाज ने कर दिखाया कि हम खुशियां बांटने के साथ-साथ हक की लड़ाई लड़ना भी जानते हैं|
इस प्रकार अब हर सरकारी दस्तावेज में एवं हर जरूरी दस्तावेज में तीन स्तंभ उपलब्ध होने लगे स्त्री, पुरुष एवं निम्न इसी प्रकार तीसरे वर्ग का दर्जा समाज में किन्नर समुदाय ने प्राप्त किया| यह एक बहुत ही गर्व की बात है|
आप सभी को यह जानकर हैरानी होगी कि जब भी किसी किन्नर समुदाय के सदस्य का निधन होता है, तो उसकी शव यात्रा रात के समय निकल जाती है | इसका कारण यह है कि जिस रात के समय उन्हें कोई गैर किन्नर समुदाय का व्यक्ति ने देख ले |
क्योंकि उन्हें लगता है कि अगर इंसान किन्नर के शव को देख ले तो वह अगले जन्म में किन्नर ही बनेगा |शव यात्रा के दौरान उन्हें चप्पल जूते से मारा जाता है| फिर एक सप्ताह तक यह लोग कुछ भी नहीं खाते पीते है और सिर्फ दान ही करते हैं और भगवान से प्रार्थना करते हैं कि निधन हुए व्यक्ति को अगले जन्म में किन्नर नहीं बनाऐ |
अब आप ही सोचिए की कितनी अधिक मुश्किलों का सामना करना पड़ता होगा कि निधन के समय व्यक्ति के लिए उन्हें भगवान से प्रार्थना करनी पड़ रही है कि उन्हें पिछले जन्म में उसे किन्नर नहीं बनाया जाए |कितना मुश्किलों भरा जीवन उनका रहता होगा और उनके जीवन में मुश्किल पैदा करने का असली कारण भी हम जैसे लोग ही बनते हैं, जो इन्हें स्वीकार नहीं करते|
अंत में मैं अपने शब्दों के माध्यम से आप सभी से यही अपील करना चाहूंगी कि तीसरे वर्ग की भी पूरी इज्जत एवं मान सम्मान दिया जाए| उनके साथ भी समानता एवं विनम्र व्यवहार किया जाए | इनके हाल-चाल के बारे में पूछा जाए अर्थात उनके क्षेत्र में बिजली, पानी, एवं सफाई की सुविधा है या नहीं| इसकी भी जांच की जाए लोकतंत्र में भी इन्हें किसी अधिकार से वंचित न रखा जाए| क्योंकि जब स्त्री और पुरुष मिलकर अर्थव्यवस्था को आगे ला सकते हैं तो ,यह सोचने का विचार है कि जब तीसरे समुदाय के लोग भी इसमें योगदान देंगे तो हमारा देश कितना आगे होगा|
अब अंत में आप सभी के सामने कुछ पंक्तियां प्रस्तुत करना चाहूंगी,
परिवार ने न स्वीकारा,
समाज ने भी धीतकारा,
सरकार ने संघर्ष से दी पहचान,
इस किन्नर समाज को मेरी तरफ से शत-शत प्रणाम, शत-शत प्रणाम!