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बारिश की बूँदें मरीन ड्राइव की सड़कों को धुँधलका बना रही थीं। स्ट्रीट लाइट की पीली रोशनी पानी में टिमटिमा रही थी, मानो कोई पुरानी यादें झिलमिला रही हों। नैना शर्मा, 30 वर्षीय जासूस, अपनी काली मोटरसाइकिल पर बैठे हुए, दूर क्षितिज की ओर देख रही थी — उस रहस्य की ओर जो उसकी नींदें छीन चुका था।
उसकी आँखों में जुनून था, लेकिन दिल के किसी कोने में एक बेचैनी भी — नीलमणि। वह नीलमणि जो सिर्फ़ एक बेशकीमती रत्न नहीं, बल्कि एक क्रांतिकारी तकनीक की कुंजी थी। उसका इस्तेमाल अगर गलत हाथों में चला जाए, तो दुनिया के संतुलन को तबाह कर सकता था।
लेकिन उसे यह अंदाज़ा नहीं था कि इस मिशन में, उसे ऐसा कोई मिलेगा जो उसके मन की दीवारों को चुपचाप तोड़ देगा।
शहर की एक वीरान फैक्ट्री में जब वह पहुँची, तो चारों ओर सन्नाटा था। हल्की रोशनी में एक छाया सी हिली। नैना ने पिस्तौल निकाली, लेकिन तभी वह चेहरा सामने आया।
“तुम?”
“तुम्हें देखकर अच्छा लगा, नैना।”
वह था अर्जुन मेहरा — एक पूर्व अंतरराष्ट्रीय जासूस, जिसे नैना ने सिर्फ़ फाइलों में पढ़ा था। उसका चेहरा कटा-छँटा, उसकी आँखें तेज़ और आत्मविश्वास से भरी थीं। उसके शब्दों में शांति थी, पर उसकी मौजूदगी में एक अजीब उथल-पुथल।
“नीलमणि... तुम्हारे पास है कोई सुराग?” नैना ने पूछा।
“सिर्फ़ एक नाम—‘शैडो सर्कल’। और एक धुंधली परछाई... शायद माया।”
एक पुराने ब्रीफ़केस से अर्जुन ने कुछ दस्तावेज़ निकाले — जिसमें संकेत था कि नीलमणि अब किसी पुराने समुद्री होटल के तहख़ाने में छुपाई गई है। नक़्शे के कोनों पर एक प्रतीक बना था — एक सर्प के फन में बँधा हीरा।
“क्या तुम मुझपर भरोसा करती हो?” अर्जुन ने अचानक पूछा।
नैना थोड़ी देर चुप रही। “मैं भरोसा फ़ाइलों पर करती हूँ, इंसानों पर नहीं।”
“और अगर इंसान फ़ाइल से ज़्यादा सच्चा निकले तो?”
उन शब्दों ने नैना के दिल में कोई हलचल मचा दी। लेकिन वह हलचल जितनी कोमल थी, उतनी ही डरावनी भी।
एक SUV शहर से बाहर निकल रही थी, और नैना अर्जुन के साथ उसका पीछा कर रही थी। बारिश की बूँदें उनके चेहरों पर गिर रही थीं, लेकिन दोनों की नज़रें सामने थीं। उनकी साँसों में एक लय थी, जैसे बारिश और दिल की धड़कनें एक ताल में बह रही हों।
“अगर हम फँस गए तो?” अर्जुन ने पूछा।
“तो हम लड़ेगे… साथ में,” नैना ने जवाब दिया।
उन शब्दों में एक विश्वास था — जो हथियारों से नहीं, दिल से आता है।
गोदाम में घुसते ही उन्हें एहसास हुआ कि वे अकेले नहीं हैं। अंधेरे में किसी ने फुसफुसाया, फिर अचानक एक गोली चली। नैना ने अर्जुन को ज़मीन पर धकेला, और दोनों एक क्रेट के पीछे छिप गए।
उस क्षण, अर्जुन ने उसका चेहरा पकड़ा और धीमे से कहा,
“अगर यह आखिरी रात है… तो मुझे पछतावा नहीं होगा... क्योंकि तुम हो।”
नैना के भीतर कुछ पिघलने लगा था, लेकिन उसने खुद को सँभाला। वह जासूस थी, प्रेमिका नहीं। या शायद दोनों?
माया एक धुँधली परछाई की तरह सामने आई। उसकी आँखें गहरे पानी की तरह थीं—सुंदर, पर घातक।
“मैं शैडो सर्कल के खिलाफ हूँ,” उसने कहा।
“पर तुम्हारी मुस्कान किसी और कहानी कहती है,” नैना ने जवाब दिया।
माया ने जो नक्शा दिया वह होटल ‘समुद्र विहार’ के तहख़ाने की ओर इशारा कर रहा था।
“पर वहाँ जाने से पहले सोच लो,” माया बोली, “क्योंकि वहाँ से कोई भी सही सलामत नहीं लौटा।”
समुद्र विहार होटल के कमरा नंबर 407 में सिर्फ़ एक ही बेड था। नैना ने मुस्कुराते हुए कहा, “मैं सोफे पर सो जाऊँगी।”
“डरती हो?” अर्जुन ने चिढ़ाते हुए पूछा।
रात गहराती गई, नक्शे पर दोनों काम करते रहे। फिर एक पल आया, जब अर्जुन ने नैना का हाथ थाम लिया।
“तुम वो हो, जिससे मैंने दूर रहना चाहा… और फिर भी खुद को रोक नहीं पाया।”
नैना की साँस अटक गई। वह कुछ कहना चाहती थी, पर शब्द साथ नहीं दे रहे थे।
प्यार और पहचान
बारिश तेज हो गई थी। कमरे की खिड़की से टकराती बूंदें एक सुर सा बना रही थीं। अर्जुन ने नैना को अपने करीब खींचा और पहली बार उसके होंठों को छुआ — वह चुंबन न तो वासना था, न डर... वह एक शपथ थी।
“मैं तुम्हारे लिए जान भी दे सकता हूँ,” उसने कहा।
नैना ने उसकी छाती पर सिर टिका दिया, “और मैं तुम्हें खोने से डरती हूँ…”
उस रात, वे दो आत्माएँ एक हो गईं — प्यार के उस अंधेरे में, जहाँ रहस्य भी काँपते हैं।
तहख़ाना असल में एक जाल था। माया ने उन्हें धोखा दिया था। शैडो सर्कल के सदस्य चारों ओर से घेर चुके थे। एक हाथ में बंदूक, दूसरे में मुस्कान — माया ने कहा,
“नीलमणि अब मेरा है। तुम दोनों सिर्फ़ प्यादे थे।”
अर्जुन और नैना ने एक-दूसरे की ओर देखा। कोई शब्द नहीं, सिर्फ़ एक नज़र और दोनों ने हमला कर दिया। गोलियाँ गूँजीं, और फिर सन्नाटा।
लेकिन माया भाग निकली — जाते-जाते एक नाम छोड़ गई — विक्रांत।
समुद्र के किनारे एक छत पर विक्रांत खड़ा था। उसकी आँखों में जुनून नहीं, पागलपन था।
“नीलमणि मेरी है! मैं दुनिया को बदल दूँगा!”
अर्जुन और नैना उसके सामने खड़े थे। बारिश फिर शुरू हो गई थी, मानो समंदर भी इस टकराव को रोकना चाहता हो।
लड़ाई शुरू हुई। जानलेवा हमला, और बचाव। अर्जुन एक झटके में घायल हो गया, लेकिन नैना ने हार नहीं मानी।
अंत में, विक्रांत की बंदूक उसके ही सीने में धँस गई। “यह तुम्हारा अंत नहीं… बल्कि मेरी मुक्ति है,” उसने गिरते हुए कहा।
नीलमणि को वापस लाते हुए, नैना ने उसे देखा — वह अब सिर्फ़ एक पत्थर नहीं था। वह उस साहस, प्रेम, और बलिदान का प्रतीक था जिसे उन्होंने जिया था।
“अब क्या?” अर्जुन ने पूछा।
“अब हम जिएँगे… बिना परछाइयों के।”
मरीन ड्राइव पर बैठे, दोनों समंदर को निहार रहे थे। तारे ऊपर चमक रहे थे। नैना ने अर्जुन का हाथ थामा।
“मैंने सोचा नहीं था कि मैं किसी से इतना प्यार करूँगी,” उसने कहा।
“और मैं वादा करता हूँ,” अर्जुन ने मुस्कराकर कहा, “जब तक मेरी साँस है, तुम्हें कोई छू नहीं सकता।”
और समंदर की लहरें उस वादे की गवाही देती रहीं।
कहानी के अगले हिस्से का इंतजार करे...