मेघपुर, एक छोटा सा हिल स्टेशन, जहाँ घने जंगल, ठंडी हवाएँ और रहस्यमयी कोहरा हर रात को एक अनसुलझा रहस्य बनाता है। यह कहानी एक साहसी पत्रकार, एक क्रूर हत्या और एक प्राचीन मंदिर के अभिशाप के इर्द-गिर्द घूमती है, जिसमें एक्शन, ड्रामा और थ्रिलर का तड़का है।
मेघपुर की रात काली थी, कोहरा इतना घना कि साँस लेना दूभर हो रहा था। जंगल के बीच एक पुरानी हवेली खड़ी थी, जिसकी दीवारें समय की मार झेल चुकी थीं। इस हवेली में रहता था प्रोफेसर रघुवीर सिंह, एक इतिहासकार, जिसका जुनून प्राचीन मंदिरों और उनके रहस्यों को खंगालना था। उस रात, हवेली की एकमात्र खिड़की से टिमटिमाती रोशनी बाहर झाँक रही थी, मानो कोई अनकहा रहस्य बयाँ करना चाह रही हो।
अचानक, एक तेज़, हृदय विदारक चीख ने रात की खामोशी को चीर दिया। हवेली की रोशनी बुझ गई, और सन्नाटा और गहरा हो गया। कुछ ही पल बाद, पुलिस सायरन की आवाज़ जंगल में गूंज उठी। पुलिस की जीप हवेली के सामने रुकी। अंदर का दृश्य रोंगटे खड़े करने वाला था—प्रोफेसर रघुवीर सिंह की लाश उनके अध्ययन कक्ष में पड़ी थी। उनके सीने में एक प्राचीन खंजर धंसा था, जिस पर विचित्र नक्काशी और प्राचीन लिपि में कुछ शब्द उकेरे गए थे। खंजर की ठंडी धातु पर खून जम चुका था, और कमरे में एक अजीब सी सिहरन थी।
अगली सुबह, मेघपुर का छोटा सा पुलिस स्टेशन हलचल से भरा था। शहर से एक युवा पत्रकार, आरव तिवारी, इस हत्या की खबर कवर करने पहुँचा। 28 साल का आरव तेज़-तर्रार और साहसी था, लेकिन उसकी आँखों में एक गहरी बेचैनी थी। मेघपुर उसका जन्मस्थान था, लेकिन एक दर्दनाक हादसे ने उसे अपने परिवार से छीन लिया था। वह सालों बाद लौटा था, और प्रोफेसर की हत्या उसे किसी पुराने रहस्य की ओर खींच रही थी।
पुलिस इंस्पेक्टर शर्मा ने उसे देखकर भौंहें तान लीं। "अरे तिवारी, तू यहाँ क्या तमाशा करने आया? ये कोई सनसनीखेज़ खबर नहीं है। एक बूढ़े की हत्या हुई, बस।"
आरव ने अपनी चिरपरिचित मुस्कान के साथ जवाब दिया, "इंस्पेक्टर साहब, प्रोफेसर रघुवीर कोई साधारण बूढ़ा नहीं थे। वो मेघपुर के प्राचीन शिव मंदिर के रहस्यों के पीछे थे। और वो खंजर? उसे देखिए, वो कोई बाज़ार का चाकू नहीं है। उसकी नक्काशी चीख-चीखकर कह रही है कि इसके पीछे कोई बड़ा रहस्य है।"
"बकवास मत कर, तिवारी!" शर्मा ने झुँझलाते हुए कहा। "तू अपनी पत्रकारी छोड़, और हमें हमारा काम करने दे।"
"ठीक है, साहब," आरव ने आँख मारते हुए कहा, "लेकिन अगर मैंने इस रहस्य को सुलझा लिया, तो मुझे धन्यवाद देना मत भूलिएगा।"
आरव ने इंस्पेक्टर को मनाकर हवेली का दौरा किया। वहाँ, प्रोफेसर के अध्ययन कक्ष में, उसे एक चमड़े की पुरानी डायरी मिली। डायरी के पन्ने समय के साथ पीले पड़ चुके थे, लेकिन उनमें लिखी बातें किसी खजाने से कम नहीं थीं। प्रोफेसर ने मेघपुर के प्राचीन शिव मंदिर और एक "काल रत्न" का ज़िक्र किया था। यह रत्न, उनके अनुसार, समय को नियंत्रित करने की शक्ति रखता था। लेकिन इसकी रक्षा एक प्राचीन अभिशाप करता था—जो कोई इसे गलत इरादों से छूता, उसकी मौत निश्चित थी।
एक पन्ने पर लिखा था: "रात के तीसरे पहर, जब कोहरा सबसे गहरा होता है, मंदिर का गुप्त द्वार खुलता है। लेकिन सावधान, रक्षक की नज़र हर कदम पर है।"
आरव का दिल जोर-जोर से धड़कने लगा। "ये काल रत्न ही प्रोफेसर की मौत की वजह है," उसने बुदबुदाया। उसने ठान लिया कि वह मंदिर जाकर इस रहस्य को सुलझाएगा। लेकिन मेघपुर के कुछ स्थानीय लोग, जो मंदिर को पवित्र मानते थे, इस बात से नाराज़ थे। उन्हें डर था कि कोई बाहरी उनके पवित्र रहस्य को उजागर कर देगा।
उसी रात, जब आरव मंदिर की ओर बढ़ रहा था, घने जंगल में उस पर हमला हुआ। तीन नकाबपोश लोग, जिनके हाथों में प्राचीन खंजर चमक रहे थे, अंधेरे से निकलकर उस पर टूट पड़े। उनकी आँखों में क्रूरता थी, और उनकी चाल शिकारी जैसी थी।
"रुक जा, तिवारी!" एक ने दहाड़ते हुए कहा। "ये तेरी आखिरी रात है!"
आरव ने फुर्ती दिखाई। वह एक पेड़ के पीछे छिपा और फिर तेज़ी से दौड़कर एक चट्टान के पास पहुँचा। उसने एक हमलावर को धक्का देकर खाई में गिरा दिया, लेकिन बाकी दो ने उसका बैग छीन लिया, जिसमें डायरी थी।
"तुझे चेतावनी दी थी," दूसरे हमलावर ने ठंडी आवाज़ में कहा। "इस रहस्य को छोड़ दे, वरना प्रोफेसर की तरह तेरा भी खून बहेगा।"
"मुझे डराने की कोशिश मत करो," आरव ने हाँफते हुए कहा। "मैं सच सामने लाकर रहूँगा, चाहे तुम कितने भी खंजर लहराओ!"
हमलावर हँसे और कोहरे में गायब हो गए। आरव घायल था, लेकिन उसका जुनून और गहरा हो गया।
चौथा दृश्य: बाबा विश्वनाथ की सलाह
अगले दिन, आरव ने मेघपुर के एक पुराने पुजारी, बाबा विश्वनाथ, से मुलाकात की। बाबा का आश्रम जंगल के किनारे था, जहाँ धूप की किरणें भी मुश्किल से पहुँचती थीं। उनकी आँखें सैकड़ों साल पुरानी कहानियाँ छिपाए थीं।
"बाबा, काल रत्न क्या है?" आरव ने बेचैनी से पूछा। "और प्रोफेसर की हत्या का इससे क्या लेना-देना है?"
बाबा ने गहरी साँस ली। "काल रत्न कोई साधारण रत्न नहीं, बेटा। ये भगवान शिव की दी हुई शक्ति है, जो समय के चक्र को थाम सकती है। लेकिन इसकी रक्षा 'रक्षक' करता है—एक प्राचीन योद्धा की आत्मा। जो लालच के साथ इसे छूता है, वो ज़िंदा नहीं बचता।"
"तो क्या प्रोफेसर की हत्या रक्षक ने की?" आरव ने पूछा।
"नहीं," बाबा ने सिर हिलाया। "रक्षक केवल मंदिर के भीतर जागता है। प्रोफेसर की हत्या किसी इंसान ने की, जो रत्न की शक्ति हथियाना चाहता था।"
"मैं सच जानना चाहता हूँ, बाबा," आरव ने दृढ़ता से कहा। "मुझे मंदिर जाना होगा।"
"सावधान, बेटा," बाबा ने चेताया। "अगर तेरा मन साफ नहीं, तो रक्षक तुझे नहीं बख्शेगा।"
उस रात, आरव मंदिर पहुँचा। कोहरा इतना घना था कि मंदिर का प्रवेश द्वार भूतों का दरवाज़ा लग रहा था। दीवारों पर प्राचीन चित्र और लेख थे, जो समय और शक्ति के रहस्य बयाँ करते थे। आरव ने डायरी के संकेतों का पालन किया और गर्भगृह में एक गुप्त द्वार खोज निकाला।
द्वार के पीछे एक संकरी सीढ़ी थी, जो एक भूमिगत कक्ष में खुलती थी। वहाँ, हवा में तैरता हुआ काल रत्न चमक रहा था। उसकी रोशनी इतनी तीव्र थी कि कमरे में हर छाया गायब हो गई। आरव ने रत्न की ओर हाथ बढ़ाया, तभी एक ठंडी हवा का झोंका आया। एक छाया प्रकट हुई—रक्षक। उसकी आँखें आग की तरह जल रही थीं, और हाथ में वही खंजर था।
"तू कौन है, जो इस पवित्र स्थान को अपवित्र करने आया?" रक्षक की आवाज़ गूंजी, मानो पहाड़ टूट रहे हों।
"मैं आरव तिवारी, एक पत्रकार," आरव ने हिम्मत जुटाकर कहा। "मैं सच चाहता हूँ। प्रोफेसर को किसने मारा? और ये रत्न क्या है?"
"ये काल रत्न है," रक्षक ने कहा। "ये समय का स्वामी है। लेकिन इसे छूने की हिम्मत करने वाला हर लालची इंसान मौत को गले लगाता है।"
तभी मंदिर में हलचल हुई। नकाबपोश लोग वहाँ पहुँच गए। उनके नेता ने नकाब हटाया—ये था रमेश ठाकुर, मेघपुर का सबसे बड़ा व्यवसायी।
"तिवारी, तूने बहुत दूर तक दखल दी," रमेश ने ठहाका लगाते हुए कहा। "ये रत्न मेरा है। इसके साथ मैं दुनिया पर राज करूँगा। प्रोफेसर ने मना किया, तो उसे रास्ते से हटा दिया। अब तू बारी है!"
रमेश के गुंडों ने आरव पर हमला कर दिया। मंदिर में एक भयंकर लड़ाई छिड़ गई। आरव ने मंदिर की दीवारों पर लटके प्राचीन हथियार उठाए और गुंडों से भिड़ गया। उसने एक को तलवार से काटा, दूसरे को पत्थर से मारा। लेकिन रमेश ने रत्न की ओर छलाँग लगाई। जैसे ही उसने रत्न छुआ, रक्षक फिर प्रकट हुआ। एक तेज़ चमक के साथ, रमेश की चीख गूंजी, और वह धूल में बदल गया।
रक्षक ने आरव की ओर देखा। "तूने लालच नहीं दिखाया। तेरा मन साफ है। ये रत्न यहीं रहेगा। इसे दुनिया के हवाले मत करना।"
अगली सुबह, मेघपुर में शांति थी। आरव ने अपनी खबर छापी, जिसमें रमेश ठाकुर की साजिश और प्रोफेसर की हत्या का खुलासा था। लेकिन काल रत्न का ज़िक्र उसने नहीं किया। वह जानता था कि कुछ रहस्य छिपे रहने चाहिए।
पुलिस ने रमेश के गुंडों को पकड़ लिया। मेघपुर के लोग आरव को हीरो मानने लगे। लेकिन उसका मन अभी भी बेचैन था। ट्रेन में चढ़ते वक्त, उसने मंदिर की ओर देखा। कोहरे में एक छाया दिखी, जो धीरे-धीरे गायब हो गई।
"शायद कुछ रहस्य अनसुलझे ही बेहतर हैं," उसने बुदबुदाया।