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पहलगाम की चीख, सिंदूर का संकल्प

पहलगाम की वादी, जहाँ फूल खिलते थे,
सपनों के रंगों में, पर्यटक हँसते थे।
22 अप्रैल की वो काली सुबह आई,
आतंक की छाया ने, खुशियाँ छीन ली भाई।
माँ की गोद सूनी, बहन का सिंदूर मिटा,
धर्म पूछकर आतंकियों ने, इंसानियत को ललकारा।
26 मासूमों का लहू, बायसरन में बिखर गया,
हर दिल में दर्द का, एक तूफ़ान सा ठहर गया।
सुशील की पत्नी की चीख, जेनिफर का आलम,
बेटी के सामने बाप का, छिन गया वो सलम।
चूड़ियों की खनक, मेहंदी की महक गई थी,
पर आतंक की आग में, सब जलकर राख हुई थी।
मगर भारत माता ने, नहीं झुकने की कसम खाई,
हर आंसू की कीमत, अब दुश्मन से वसूल आई।
ऑपरेशन सिंदूर, वो गर्जना वीरों की,
राफेल की हुंकार, बनी आतंकियों की ताबूत थी।
नौ ठिकानों पर बम बरसे, दुश्मन का मन डोला,
सिंदूर का टीका बना, भारत का विजय चोला।
नारी का सम्मान, वो पवित्र लाल रेखा,
जो मिटाने की कोशिश की, उसे मिटा दिया एका।
जवान मुरली, दिनेश, सुरेंद्र, सुनील,
इम्तियाज, दीपक, हर शहीद का दिल,
न्याय का ध्वज बन, लहराया आसमाँ में,
उनके बलिदान ने, लिखा नया इतिहास यहाँ में।
पहलगाम की मिट्टी, अब भी पुकारती है,
हर बूँद लहू की, सत्य की बात करती है।
सिंदूर की लाली, अब नहीं मिटेगी कभी,
भारत की शक्ति, हर आतंक को रौंदेगी अभी।
आंसुओं से सींचा है, ये संकल्प हमारा,
शांति की राह में, न रुकेगा बलिदान सारा।
पहलगाम के शहीदों, तुम्हें नमन है हमारा,
तुम्हारा सिंदूर, अब भारत का ध्वज हमारा।  

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