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सावन की पूर्णिमा की चाँदनी में, जब राखी का धागा भाई की कलाई पर बंधता है, मानो कोई कविता हवाओं में गूँज उठती है। यह धागा केवल रेशम या सूत का नहीं, बल्कि उन अनगिनत यादों का है, जो भाई-बहन के रिश्ते को अमर बनाती हैं। रक्षाबंधन भारत का वह पर्व है, जो प्रेम की नदी को विश्वास के तटों से जोड़ता है। यह एक वचन है—रक्षा का, स्नेह का, और हर सुख-दुख में साथ निभाने का। 

जैसे चंदन की सुगंध हवा में घुलती है, वैसे ही रक्षाबंधन दिलों में बस जाता है। यह केवल एक त्योहार नहीं, बल्कि एक भावना है, जो परिवारों को एक सूत्र में बांधती है और समाज में एकता की माला गूँथती है। आइए, इस लेख में रक्षाबंधन की काव्यात्मक यात्रा पर चलें—पौराणिक कथाओं से लेकर आधुनिक युग तक, और एक ऐसी कहानी के साथ, जो इस धागे की ताकत को शब्दों में पिरो दे। 

पौराणिक कथाएँ: प्रेम का अमर सूत्र

रक्षाबंधन की कहानी सभ्यता के प्राचीन पन्नों में लिखी गई है। महाभारत की एक कथा हमें द्रौपदी और कृष्ण के रिश्ते की ओर ले जाती है। एक बार, जब कृष्ण की उंगली से लहू की बूँदें टपक रही थीं, द्रौपदी ने अपनी साड़ी का आँचल फाड़कर उस रक्त को थाम लिया। यह साधारण-सा धागा प्रेम का ऐसा बंधन बना कि जब द्रौपदी संकट में थी, कृष्ण ने अपनी माया से उनकी लाज बचाई। यह कथा राखी के उस जादू को दर्शाती है, जो एक धागे को विश्वास की डोर बना देता है। 

एक अन्य कथा यम और यमुना की है। यमुना ने अपने भाई यमराज की कलाई पर स्नेह का सूत्र बांधा, और यम ने बदले में उन्हें अमरता का वरदान दिया। यह कथा हमें सिखाती है कि रक्षाबंधन केवल रक्षा का नहीं, बल्कि प्रेम की अनंतता का उत्सव है। 

इतिहास भी रक्षाबंधन की गाथा गाता है। मेवाड़ की रानी कर्णावती ने मुगल बादशाह हुमायूँ को राखी भेजी, और उस धागे की ताकत ने हुमायूँ को कर्णावती की रक्षा के लिए प्रेरित किया। यह घटना बताती है कि राखी केवल परिवार की चौखट तक सीमित नहीं, बल्कि यह समाज के ताने-बाने को भी मजबूत करती है। 

राखी का रंग-बिरंगा संसार

सावन की पूर्णिमा की सुबह, जब राखी की थाली सजती है, मानो घर में स्नेह का सूरज उग आता है। बहनें चंदन की सुगंध और रोली की लालिमा से थाल सजाती हैं। उसमें राखी, अक्षत, दीपक और मिठाइयों का मधुर स्वाद होता है। भाई के मस्तक पर तिलक की लकीर खींची जाती है, कलाई पर राखी बंधती है, और मिठाई के साथ लंबी उम्र की दुआ मांगी जाती है। यह रस्म ऐसी है, मानो कोई कवि अपने शब्दों से प्रेम की कविता रच रहा हो। 

राखी का संसार रंगों से भरा है। कभी साधारण सूत की राखी दिल को छूती थी, तो आज डिज़ाइनर राखियाँ, मोतियों से सजी राखियाँ, और बच्चों के लिए कार्टून थीम वाली राखियाँ बाजारों में चमकती हैं। पर्यावरण के प्रति प्रेम ने बीज राखी को जन्म दिया, जो बांधने के बाद धरती की गोद में पौधे बनकर खिलती है। 

भारत के हर कोने में रक्षाबंधन अलग-अलग रंगों में सजता है। उत्तर भारत में यह भाई-बहन का पवित्र उत्सव है, तो दक्षिण भारत में अवनी अवित्तम के रूप में यज्ञोपवीत बदलने की परंपरा निभाई जाती है। महाराष्ट्र में नारियल पूर्णिमा के दिन मछुआरे समुद्र को नारियल अर्पित करते हैं। यह विविधता रक्षाबंधन को एक रंग-बिरंगी माला बनाती है। 

राखी की डोर

रक्षाबंधन की सच्चाई छोटी-छोटी कहानियों में बसती है। सुनिए, माया और रुद्र की कहानी। माया और रुद्र, दो भाई-बहन, जिनके बचपन की यादें गलियों में दौड़ती थीं। माया की शरारतें और रुद्र का उसे बचाना—उनका रिश्ता इन छोटी-छोटी बातों से बुना गया था। लेकिन समय ने उन्हें बिछाड़ दिया। माया विदेश में नौकरी करने चली गई, और रुद्र अपने गाँव में माँ-बाप की देखभाल में व्यस्त हो गया। 

इस रक्षाबंधन पर माया नहीं आ सकी। उसने एक छोटा-सा डिब्बा भेजा, जिसमें एक बीज राखी और एक पत्र था। पत्र में लिखा था:  

"रुद्र, यह राखी बांधकर इसे अपने आँगन में बो देना। जैसे यह पौधा बड़ा होगा, वैसे ही हमारा प्यार हमेशा हरा रहेगा।"  

रुद्र ने राखी बांधी और उसे आँगन में बोया। हर सुबह, जब वह उस पौधे को पानी देता, उसे माया की हँसी सुनाई देती। यह कहानी हमें बताती है कि राखी की डोर दूरी को पाट देती है और प्रेम को अनंत बनाती है। 

सामाजिक और भावनात्मक सौंदर्य

रक्षाबंधन एक कविता है, जो भाई-बहन के रिश्ते को शब्द देती है। यह केवल खून का रिश्ता नहीं, बल्कि दिल का बंधन है। सगी बहनें न हों, तो कजिन्स, दोस्त या पड़ोस की बहनें राखी बांधती हैं। यह त्योहार सिखाता है कि प्रेम की कोई सीमा नहीं होती। 

यह पर्व समाज को एकता के रंग में रंगता है। रवींद्रनाथ टैगोर ने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान रक्षाबंधन को हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक बनाया। आज भी यह विभिन्न समुदायों को जोड़ता है। बच्चे अपने शिक्षकों को राखी बांधते हैं, तो सीमा पर तैनात सैनिकों को राखी भेजी जाती है। यह त्योहार हर उस रिश्ते को सम्मान देता है, जो विश्वास और प्रेम से बुना गया हो। 

रक्षाबंधन महिलाओं के सम्मान का भी गीत गाता है। यह पुरुषों को याद दिलाता है कि उनकी जिम्मेदारी केवल अपनी बहन तक नहीं, बल्कि समाज की हर महिला के प्रति है। 

आधुनिक युग में रक्षाबंधन: परंपरा का नया रंग

आज रक्षाबंधन परंपरा और नवीनता का सुंदर संगम है। ऑनलाइन दुकानों ने राखी खरीदना आसान बना दिया है। विदेशों में बसे भाई-बहन वीडियो कॉल पर राखी बांधते हैं। सोशल मीडिया पर रक्षाबंधन की कहानियाँ साझा होती हैं, जो इस पर्व को विश्व के कोने-कोने तक ले जाती हैं। 

पर्यावरण के प्रति प्रेम ने रक्षाबंधन को नया स्वरूप दिया है। बीज राखी और सूती धागे की राखी धरती के प्रति हमारी जिम्मेदारी को दर्शाती हैं। यह बदलाव सिखाता है कि परंपराएँ समय के साथ नृत्य कर सकती हैं, लेकिन उनका हृदय वही रहता है। 

लैंगिक समानता का विचार भी इस कविता में शामिल हो रहा है। अब बहनें न केवल भाइयों को, बल्कि एक-दूसरे को भी राखी बांधती हैं, जो नारी सशक्तिकरण की एक मधुर धुन है। 

हर कविता की तरह रक्षाबंधन को भी कुछ चुनौतियाँ झेलनी पड़ती हैं। इसका वाणिज्यिकरण इसकी सादगी को छीन रहा है। महंगी राखियाँ और उपहारों का दबाव इस पर्व के भावनात्मक रंग को फीका करता है। कुछ लोग इसे केवल भाई की रक्षा की जिम्मेदारी तक सीमित मानते हैं, जो लैंगिक रूढ़ियों को जन्म देता है। 

इन रुकावटों का जवाब जागरूकता और संतुलन में है। हमें रक्षाबंधन की आत्मा—प्रेम और विश्वास—को सहेजना होगा। पर्यावरण-अनुकूल राखी को अपनाना, सादगी को गले लगाना और समानता को बढ़ावा देना इस कविता को और सुरीला बना सकता है। 

एक धागे की कविता

रक्षाबंधन एक धागे में बंधी कविता है, जो प्रेम और विश्वास की लय पर थिरकती है। यह हमें अपनों के साथ समय बिताने, पुरानी यादों को सहेजने और नए वचन लेने की प्रेरणा देता है। आधुनिक युग में, जब जिंदगी की भागमभाग रिश्तों को पीछे छोड़ देती है, रक्षाबंधन हमें रुककर अपनों की ओर देखने का मौका देता है। 

तो इस रक्षाबंधन, आइए एक धागा बांधें—स्नेह का, विश्वास का, और एकता का। आइए, उस धागे को बोएँ, जो कलाई पर नहीं, बल्कि दिलों पर बंधे, और हमारे रिश्तों को हमेशा खिलता रखे। 

राखी का धागा, प्रेम की डोर,  
 बांधे दिलों को, मिटाए हर शोर।  
 सावन की चाँदनी, स्नेह की बात,  
 रक्षाबंधन है, रिश्तों की मुलाकात। 

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