वास्तव में हम अपने जीवन के प्रति और कुदरत के प्रति कितने कृतज्ञ हैं यह हम अपने जीवन की परिस्थितियों व अपने मन के भावों और विचारों को देखकर समझ सकते हैं।

कुदरत के नियम अनुसार जो हम देते हैं, वही लौटकर वापस हमारे पास आता है, चाहे वह प्यार हो, सम्मान हो, आभार हो, नफरत हो या शिकायतें। हाल ही में पूरी दुनिया को अपनी चपेट में लेने वाला अदृश्य करोना वायरस भी कुदरत के इस नियम को सही सिद्ध करता है। कुदरत ने हमें विभिन्न प्रकार के वरदान दिए- जल, वायु, फल, फूल, शरीर व स्वास्थ्य आदि। लेकिन कुदरत के इन सब वरदानों के बदले कुदरत के कृतज्ञ रहने की जगह, हमने कुदरत को विभिन्न तरह के प्रदूषणों से प्रदूषित किया। प्लास्टिक, हानिकारक रसायन आदि का अत्यधिक उपयोग करके कुदरत को निरंतर नुकसान पहुंचाया, तो कुदरत ने भी हमें अपने जीवन की रक्षा करने के लिए, प्लास्टिक मास्क, कृत्रिम ऑक्सीजन, वैक्सीनेशन आदि लेने पर विवश कर दिया। यही नहीं, हर दिन कुदरत के अनगिनत वरदानों के बदले में हम कुदरत को सिर्फ अनगिनत शिकायतें ही देते हैं। उदाहरण के तौर पर - आज खाना अच्छा नहीं बना, बारिश क्यों हो रही है, हवा कितनी गर्म है, मेरा घर छोटा है, पानी ठंडा नहीं है, मेरे पास वाहन नहीं है, इसी तरह की न जाने कितनी शिकायतें हम रोज़ करते हैं। कभी सोचा है यदि कुदरत हमारी इन शिकायतों से तंग आकर अपने मुफ्त में दिए गए सभी वरदानों को वापस ले ले तो क्या होगा? अगर हर पल मुफ्त में मिलने वाली हवा ही बंद हो जाए? तो जीवन का अस्तित्व ही खतम हो जाएगा।

कुदरत के प्रति कृतज्ञता का अभाव व कृतज्ञ होने की खुशी हमारे जीवन पर किस तरह का प्रभाव डाल सकती है, यह एक छोटे से बच्चे शान की कहानी के माध्यम से आपको दर्शाती हूं।

सभी बच्चों की तरह शान का संडे भी आज टीवी के सामने ही निकला। सुबह से टीवी पर अपने मनपसंद कार्टून्स और बैटमैन मूवी देखने के बाद भी शान का अब तक मन नहीं भरा था। रात के नौ बज रहे थे, मम्मी ने शान को याद दिलाया कि कल स्कूल भी जाना है। इस पर शान बहुत उदास हो गया क्योंकि उसे अभी और टीवी पर चाइना के बारे में दिखाए जा रहे दिलचस्प किस्से देखने का मन था। पर मम्मी की डांट के डर से, बिना मन से वह अपने कमरे में जाकर बैड पर लेट गया। उसे बहुत गुस्सा आ रहा था। वह सोचने लगा, पता नहीं ये रोज-रोज स्कूल क्यों जाना पड़ता है और पढ़ाई क्यों करनी पड़ती है? कितना मजा आता अगर रोज संडे होता तो हम रोज पूरा दिन टीवी देखते और गेम्स खेलते। यह सब सोचते-सोचते शान को नींद आ गई। टीवी के शोर से शान की नींद खुली तो ड्राइंग में जाकर उसने देखा, उसके मम्मी और पापा घबराए हुए से टीवी पर न्यूज़ देख रहे हैं। न्यूज़ में बताया जा रहा था कि चाइना में चमगादड़ खाने से एक खतरनाक अदृश्य वायरस पूरी दुनिया में फैल गया है, जिसकी वजह से पूरी दुनिया में लाॅक्डाउन लगा दिया गया है। कोई अपने घर से बाहर नहीं जा सकता। यह सब सुनकर पहले तो शान भी घबरा गया लेकिन जल्द ही उसने सोचा चलो अच्छा है अब स्कूल नहीं जाना पड़ेगा। लाॅक्डाउन को एक महीना हो गया था और शान को बहुत मजा आ रहा था। स्कूल, होमवर्क, जल्दी उठने और जल्दी सोने की टेंशन जो खत्म थी। अब तो बस टीवी, खाना-पीना और आराम। यही सब कुछ तो शान चाहता था। ऐसे ही मजे से दिन बीतने लगे। आज लगभग सात महीने हो गए थे लाॅक्डाउन को। आज शान चुपचाप अपने कमरे में बैठा था, मम्मी के पूछने पर उसने कहा, मैं बोर हो रहा हूं, तो मम्मी ने कहा टीवी देख लो या पीसी पर गेम खेल लो। इस पर शान ने कोई जवाब नहीं दिया। उसे मन ही मन गुस्सा आ रहा था। वह सोचने लगा, टीवी और गेम बस, लाइफ में कुछ और नहीं बचा क्या? मैं इतने महीनों से स्कूल भी नहीं गया। शान उदास होकर बैड पर लेट गया और सोचने लगा कि कैसे स्कूल में दोस्तों के साथ पढ़ाई के साथ-साथ वह मस्ती भी किया करता था। शाम को ट्यूशन के बाद पार्क में खेलता और साइकिल चलाता था। जब मम्मी मार्केट भेजती थी तो अपनी पसंद की चीजें भी खरीद कर, लाकर खाता था। उसे यह सब बहुत याद आ रहा था। उसे याद आया के कैसे जू में जाकर उसे भी बाकी लोगों की तरह पिंजरे में कैद जानवरों को तरह-तरह की आवाजें निकालकर डराने में कितना मजा आ रहा था। आज उसे भी अपनी जिंदगी पिंजरे में कैद उन्हीं जानवरों जैसी लग रही थी, जिसे करोना वायरस डरा रहा था और घर मैं कैद होने पर मजबूर कर दिया था। उसे लगने लगा अगर वह और घर में कैद रहा तो उसका दम घुट जाएगा। इस डर से रोते-रोते वह जोर-जोर से चिल्लाने लगा, "मुझे स्कूल जाना है", "मुझे स्कूल जाना है", "मुझे स्कूल जाना है"। इतने में मम्मी ने उसका हाथ पकड़ कर हिलाया और कहा, हां तो पहले उठ तो जाओ, कब से उठा रहीं हूँ के देर हो जाएगी। यह सुनकर शान ने अपनी आंखें खोली तो देखा सुबह हो गई है। आज शान बहुत खुशी-खुशी स्कूल के लिए तैयार हो रहा था और बार-बार भगवान को धन्यवाद दे रहा था कि वह केवल सपना देख रहा था, उसकी जिंदगी जानवरों की तरह कैद में नहीं थी।

शान को तो एक रात के सपने ने कृतज्ञता की खुशी का एहसास करा दिया था। लेकिन क्या आप और हम कभी कुदरत व जीवन के प्रति कृतज्ञ होने से मिलने वाली खुशी का एहसास कर पाएंगे? जब कुदरत के नियम अनुसार और वैज्ञानिक तौर पर भी यह बात सिद्ध है कि जिस चीज़ पर हम अपनी अधिक ऊर्जा व ध्यान केंद्रित करते हैं वह सक्रिय हो जाती है तो क्यों ना हम आज अपितु अभी से जीवन व कुदरत के प्रति अपनी शिकायतें कम करके जीवन के बहुमूल्य वरदानों पर अपना ध्यान केंद्रीत करके अपने जीवन को कृतज्ञता के जरिए सरल और सुंदर बनाने की एक कोशिश करें।

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