बाहर निकले तो हर कोई अपने भगवान पूज रहा था।
कोई अल्लाह,कोई शिव तो कोई श्याम पूज रहा था।
कोई मजहब बता रहा था।
कोई धाम सजा रहा था।।
कोई फर्क़ में भी आम नजर आता था।
तो किसी को जात पात में भ्रम नजर आता था।
कोई कर्म पर ध्यान देता था।
तो किसी ने धर्म पर निशाना भेदा था।।
बाहर निकला तो हर कोई अपने भगवान पूज रहा था।
कोई जीसस, कोई श्याम तो कोई राम पूज रहा था।।
पूछा मैंने सब एक है?
तो क्यूं भगवान में भेद बताते हो।
अलग अलग बता ऊपरवाले में क्यूं धर्म का भेद समझाते हो।
बता कर हर ईश्वर का क्या वो तुम्हारे हो जाते हैं।
जो तुम ऐसे हर बात को क्यूं बतलाते हो।।
बाहर निकले तो हर कोई अपने भगवान पूज रहा था।
कोई अल्लाह,कोई जीसस तो कोई घनश्याम पूज रहा था।।
निर्मल मन की जो काया है।
वही तो वो भाग्यविधाता है।
हर दुख में जो साथ दे।
जीवन संघर्ष को जो टाल दे।
वहीं सब का रक्षक वही सबका दाता है।।
बाहर निकले तो हर कोई अपने भगवान पूज रहा था।
कोई वाहे गुरु, कोई जीसस, कोई श्याम पूज रहा था।।
क्यूँ ऐसा करते हो।
क्यूँ ऊपर वाले तक को अलग अलग अपनाते हो।
जब उसने सबको एक बनाया है।
तो क्यूँ लड़ झगड़ कर मजहब के नाम पर राम मन्दिर और मस्जिद के बँटवारे करवाते हो।।
बाहर निकले तो हर कोई अपने भगवान पूज रहा था।
कोई अल्लाह,कोई जीसस कोई घनश्याम पूज रहा था।।
भगवान रहे या अल्लाह।
है वो खुदा ही।
जिसने बनाया है तुम्हें वो कोई इंसान तो नहीं।
अलग अलग धर्म में इंसान पलते है,भगवान तो नहीं...
बाहर निकले तो हर कोई अपने भगवान पूज रहा था।
कोई अल्लाह,कोई शिव, कोई श्याम पूज रहा था।।
क्यूं नहीं सबको एक मानते हो।
इन्सान को भाई भाई के नाम से क्यूं नहीं जानते हो।
प्यार मोहब्बत के धर्म को क्यूं नहीं अपनाते हो।
क्यूं नहीं इंसानियत का एक धर्म सबको समझाते हो ।।
इंसानियत ही एक धर्म है।
बाकी सब कहा सुनी के वार है।
प्यार ही बस हथियार है।
मोहब्बत ही बस इंसानियत का आभार है।।