Image by Květa from Pixabay वे बोल नहीं सकते,
पर दर्द तो सहते हैं,
अपनी पीड़ा भरी आँखों से,
न्याय को कहते हैं।।
उनकी चीत्कार अनसुनी,
उनकी आहें बेअसर,
इंसानों की दुनिया में,
कब होगा उनका बसर?
पंजों में बेबसी है,
आँखों में है सवाल,
क्यों सहें अत्याचार,
क्यों कुचले उनका हाल?
जंगल उनके घर थे,
अब सिमटी है ये दुनिया,
भूख और डर से भरी,
उनकी हर गलियां।।
प्रयोगशाला की दीवारों में,
कैद उनकी ज़िंदगी,
सिसकते हैं हर पल,
मिलती नहीं आज़ादी।।
सड़कों पर लावारिस,
पत्थरों की मार सहते,
प्यासे तड़पते हैं,
कोई नहीं जो जल देते।।
ज़रूरत है एक आवाज़ की,
जो उनकी बन जाए,
हर ज़ुल्म के खिलाफ,
एक मजबूत दीवार उठाए।।
कानून बने कठोर,
मिले उनको भी अधिकार,
बेजुबान जीवों को भी
जीने का हो अधिकार।।
उनकी करुणा भरी आँखों को,
अब और न झुकाओ,
इंसानियत का धर्म निभाओ,
उन्हें भी न्याय दिलाओ।।
इस धरती पर सबका है हक,
जीने का सम्मान से,
बेजुबान भी हकदार हैं,
प्रेम और करुणा से।।
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