भव्यम् भारत में संस्कृति दिव्यम् है।
जन्म हुआ जिस धरा पर उस माटी का रंग प्यारा है।
अफ़साना मेरा सजता अनोखा ये भारत न्यारा है।
वैविध्य से प्रसन्न,हर कलाकार का भिन्न भिन्न आकार है।
ईश्वरीय प्रीत से बंधी 'श्री-शारदे-कालिके'विद्या साकार है।
शून्य से सृजन होता यहाँ,ये बात तो गौरवशाली है।
अस्तित्व का संरक्षण होता,ऐसी दैवीशक्ति की जाली है।
मिटना चाहता चाहत में हर शख्स़,देशभक्ति की शान में।
खुलकर झेले वार दुश्मनों के,लहु लहु बहती शौर्यता जान में।
पर हृदय भर जाता है उन घावों से,जो अपनों ने ही दिए
भक्ति की शक्ति से जीये भक्तदुलारों ने जलाये अपनत्व के दीये।
ये भारत कोई ज़मी ही नहीं,एक टुकड़े पर भी वजूद मिलता।
बिखरे हुए है हर जगह दैवी मयूरपंख,हृदय कमल खिलता।
शेर सा आतंरनाद होता,समयचक्र परिवर्तित हो जाता।
जो ढ़ाई अक्षर प्रेम का,जादुई किताब से गुज़रकर पाता।
ज़िंदगानी के रंगों में,धीरे-धीरे मन से तन का सिलसिला है।
रुह भी घुल जाती ऐसी स्वप्नरंगत केसरिया क्रांति,
'श्री स्वप्नील' से;
विश्वेश्वर श्वेतआभा से जो हराभरा वरदान मिला है। इस भव्यम् भारत में संस्कृति दिव्यम् है।