मृत्यु है जीवन और मरण का सत्य।
जन्म के साथ ही जब मृत्यु की तिथि हो जाती है निश्चित।
तो फिर किस विधा का रहता है इंतजार,होने के बाद वक्त और तिथि सुनिश्चित।।
तो क्यूं रहते है मौत की सच्चाई से परेय।।
मौत के करीब पहुंच उन गिनती के लम्हों के लिए फिर करते हैं खुदा को शुक्रगुजार।।
हर पल ज़िंदगी जी क्यूं नहीं मौत की सच्चाई को खुशी से गले लगाते है।।
जब ज़िंदगी के बचते हैं कुछ लम्हे, तो फिर उन्हें सुधारते है।।
क्यूं नहीं जिंदगी के हर पल में हम वही हंसी भरते हैं।।
कुछ लम्हों में जीवन गुजर जाना है।
ना किसी का है ठिकाना।
फिर इस जहान में ना जाने किसको कहां जाना है।।
तो आओ उसको अपनाते है।
हर पल हर पन्ने में ज़िंदगी की इबादत के लेख लिख जाते हैं।
जी लेते है हर लम्हें को, क्यूं हम जीवन के साथ साथ मृत्यु को गवाते है।।