दीप प्रज्वलित कर आओ करे सम्मान अंतर दीप का।
कला, संगीत, साहित्य के जोश से स्वागत जीवन मीत का।
समुद्रमंथन से प्रकट श्री लक्ष्मी रुधिररुपी वस्त्र धारिणी।
प्रेम ज्योति तेजस्विनी सुख-धन संपदाकारी दुःख हारिणी।
स्वयंवर चुने प्रिये विष्णुनाथ के संगिनी लक्ष्मी श्री विभूति।
भावलक्ष्मी,गुणलक्ष्मी,आत्मलक्ष्मी से खिलंती हृदय में मति।
चौदह वर्ष के वनवास से लौटे राजन श्री राम अयोध्या नगरी।
प्रिय राजा आगमन से छलकती प्रजा की हृदयस्पंदना गगरी।
घर-घर दीये जलाने लगे हुई समान दीया पंक्ति प्रकाशित।
अमावस्या की रात्रि शरदऋतु में श्री राम-सीते आभासित।
देख अपने राजन को जश्न हुआ खुशनुमा चारों ओर से।
आतिशबाजी के नजारे से रोशन जग सारा खेले मनमोर से।
श्री राम संग संगिनी सीते,दुलारे लक्ष्मण करे प्रस्थान राजघर।
'तमसो मा ज्योतिर्गमय'नाद विजय गुंजन से गूंजता रातभर।
ज्ञान महीमा उज्ज्वल करे तन-मन और धन आकर्षित जैसे इत्र।
मिष्ठान-पकवान,रंगोली, आभूषण वस्त्र से प्रसन्न।