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दूसरो के कंधो पर अर्थी उठती है।
सपने कभी पूरे नहीं होते।
मेहनत करनी पड़ती है सपनो के लिए।
रास्ते कभी अधूरे नहीं होते।।
प्रयास निरंतर करना होगा।
अभ्यास पत्र पर चढ़ना होगा।
बिना पानी के खेतों में भात नहीं होते।
दूसरो के कंधो पर अर्थी उठती है।
बिना श्रम के पूरे प्रयास नहीं होते।।
सांच सवेरे उगते सूरज में।
ढलने के आसार नहीं होते।
मसक्क्त करनी होती है।
स्वत्वत मान लेने से उस पर अधिकार नहीं होते।
दूसरो के कंधो पर अर्थी उठती है।
ख्वाब देख लेने से पूरे ख्वाब नहीं होते।।
आस होती है जब धार नहीं होते।
कलम उठाने से पूरे अरमान नहीं होते।
लग्न होनी चाहिए साथ तक पहुंचाने की।
सपने कभी घनघोर नहीं होते।।
दूसरो के कंधो पर अर्थी उठती है।
बिन स्तब्ध दिशा डोर नहीं होते।।
सोने से सपने के अर्थ पार नहीं होते।
ऐसे ही पर्वतों से नदियों के धार नहीं होते।
बिन पतवार मिले दिशा भार नहीं होते।
दूसरो के कंधो पर अर्थी उठती है।।
सपने कभी साकार नहीं होते।।
अस्त्रों से कभी अभिमान नहीं होते।
आत्म संयम से सम्मान नहीं होते।
संलग्न होना होता है ध्येय पर।
बिना मृदंग राग नहीं होते।
दूसरो के कंधो पर अर्थी उठती है।
बिना धैर्य रास्ते पार नहीं होते।।
कभी होता है ध्वनि स्वर,कभी होता पदक स्वर्ण।
लाज भय भाव को त्याग तू,मंजिल को कर प्राप्त तू।
कंधों का ना हो कभी सहारा।
मंजिल के तरफ बढ़ते कदमों से मिले आसरा।
पैमाना जीत की खुशियों से न हो कम।
फतेह करे हर मंजिल जीते तेरा हर श्रम।।

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