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यहाँ देख क्या बात करता है|
जिन अपनों के लिए तू ताउम्र लड़ता है|
जोड एक एक पैसा तू जिनके लिए रखता है|
तू इन्हीं के लिए क्यों तिजोरियां भरता है||
तो क्यूँ तू इस भ्रम में रहता है|
क्यूँ आने वाले कल के लिए इतना सहता है|
ना कोई अपना ना कोई पराया है|
जिसने सब छोड़ दिया वही ईश्वर मे समाया है||
जर्जर होती रिश्तों की सीमाएँ|
बिखरती पाबंदियों की मर्यादायें|
क्या सोच तू इन्हें सम्भाल रहा है|
क्या सोच तू अपने लिए ही समस्याएं पाल रहा है||
आप अपना कह रोते हो|
रोके से ना रुके इतना भी क्यूँ सहते हो|
पल पल तड़पे पल पल सोये|
अपनो को ना माना अपना,
फिर भी इनके सपनों में खोए||
जिस रोटी कपड़े के लिए लड़े ताउम्र|
और मौत ले आई एक कफन में|
जमीनों जायदाद के लिए झगडे|
और न लगी दो गज जमीन भी दफन में||
क्यूँ जमीन जायदाद के भ्रम में रहते हो|
क्यूँ प्यार के मोह संग बहते हो|
नहीं है इनका कोई सार, निश्चल सा है वो नीर|
जिनसे लगा बैठा तू प्रीत||
क्या सोच खोद रहा है खुद की कब्र|
क्यूँ है बेफिक्र सा सब्र|
गया है सब कुछ, या सिर्फ है कल की फिक्र|
कुछ भी कर ले, पर मरने में होगा ना इसका कोई जिक्र||
तू जिनका बना रहा है किला|
वो बस माटी का है एक पुतला|
जिसे एक दिन टूट माटी मे ही मिल जाना है|
एक दिन हम सब को ये मोह माया छोड़ जाना है||