Photo by Stijn Swinnen on Unsplash
मांग भर विवाह की बेदी पर वो छोड़ गया था बैठे मुझे द्वार पर।
उसका फौजी होना कठिन हुआ था उस पल मेरे प्यार पर।
विवाह के लिए बैठी मैं, आया था सन्देशा-ए-देश।
उठ खड़ा हुआ वो, पहनी वर्दी, एक पल में बदल गया भेष।।
नयी नवेली दुल्हन का श्रृंगार, जोड़ा छोड़,,अब उसे धरती माँ के पास जाना था।
देश के खातिर अब उसे फर्ज अपना निभाना था।
दुल्हन ने हिम्मत दिखाई,
पिया को हंसी खुशी नम आँखों से दी विदाई।।
माँ बहने भी दुख में रोती।
फिर नई नवेली दुल्हन के मन में बीज़ प्रेम के बोती।
पति तुम्हारा फौजी है,निश्चिंत हो जाने दो उन्हें।।
वो देश का नाम रोशन करके आएगा।
हमेशा रहेगा वो तेरा पति,
साथ ही भारत माँ का बेटा कहलायेगा।।
जंग के लिए हंसी खुशी किया नयी नवेली दुल्हन ने पति को विदा।
देख बहु को माँ पापा ने भी अश्रु मन ही पी लिए।
जीत का परचम लहराएगा।
यही सोच खुश हो लिए।।
पर कहाँ उसका ठिकाना था ।
वो फौजी है लौट आऊंगा ये कहना बस एक बहाना था।
कौन जानता है सरहदों पर क्या हो जाएगा।
कौन जिंदा लौटेगा और कौन कफन में वापस आएगा।।
ले आशा बहन भाभी से कहती।
रूप दुल्हन का ले हमेशा तुम सजी धजी रहती।
भाभी कहती नयी नवेली दुल्हन हूँ,ना जाने किस पल वो आयेंगे।
पिया मेरे उठा गोदी में मुझे सारा जग घुमायेगें।।
दिन राखी का आया।
बहन ने बड़े प्रेम से राखी का थाल सजाया।
आज भाई को आना था।
परिवार में अब खुशियो का ना कोई ठिकाना था।।
कुछ पल बाद दस्तक सी सुनाई आई।
मां पापा बीबी बहन दौड़ी चली आईं।
एक तुक रह गए नैना, ना रुका अश्रुओं का बहना।
जब देखा सिपाही की अंतिम यात्रा हो रही थी तिरंगा में लिपटी रवाना।।
परिवार पर मातम का साया छाया।
अब मानो सारा जग खुद से दूर उन्होंने पाया।
माँ बोली ये मेरा लाल नहीं।
इसे धर पर एक बाल नहीं।
हड्डी इसकी सबूत नहीं।
इसके तन पर खाल नहीं।
ये मेरा लाल नहीं।।
पिता बोले कैसे मान लूँ ये मेरा पूत है।
एक इंच नहीं कम नहीं लिया गया जिसे भर्ती में,
ये मेरा वही सुपूत है।।
कैसे लूँ मैं वापस इसको।
इसके धर का तो एक भी हिस्सा न साबुत है।।
बहन ने कहा मैंने तो जीता जागता इंसान भेजा था।
मेरे भाई को धरती माँ के लिए फरमान भेजा था ।
सोचा था,,आयेगा वो वापस राखी के दिन।
कैसे बांधू अब राखी हांथ बिन।।
देख नयी दुल्हन को हर कोई हक्का बुक्का रह गया।
तोड़ी चूडी अपने हांथों से उसने मानो अब सब रखा का रखा रह गया।
जग से सारी रीत गई।
जब उसकी सिंदूर से भरी मांग भीग गयी।
रोती बिलखती बोली क्यूँ तुम इतने दूर गए।
क्यूं साथ मेरा छोड़ गए।।
एक पल भी ना देख पाई तुमको मन भरकर।
सोचा था आओगे तुम तो नाचेगी पायल मेरी छन छन कर।।
ना तुमको देख पाई थी तब।
ना तेरा शरीर देखने को मिला।
हे मेरा खुदा क्या कसूर था मेरा।
जो मेरे पति का शव यूँ मुझे टुकड़ों टुकड़ों में देखने को मिला ।।
मर जाती इससे तो अच्छा।
ये कैसी अग्नि परिक्षा है।
आज मेरा सब गया।
अब ना कोई प्रतीक्षा है।।