पार्वती, कामाख्या का रूप, निवास स्थान सर्वत्र स्वरुप।

सर्व ग्रह व्याप्त, ॐ क्रीं कालिकायै नमः, ॐ कपालिन्यै नमःमंत्र है पर्याप्त।

अस्त्र जिनका खड्ग अति भाये, जीवनसाथी उनके महाकाल कहलाये।।

काल के नारी सुलभ रूप में हुई अवतरित।

महाकाली हैं सृजन, संरक्षण और विनाश की देवी प्रतिपादित।।

देवी के नौ रूपों में से है एक काली, जिनसे खाये हर कोई भय, वह दुर्गा का अवतार महाकाली।।

पर माँ श्रृंगार में कैसी हैं ये शर्तें,

नौ दिन बिठा देवी को, नारी सर्जन नहीं कर सकती है,

ऐसा भी क्या जो एक देवी दूसरी देवी का श्रृंगार नहीं कर सकती है?

नारी को देवी जो मानते हो, तो क्यूँ देवी अलंकरण के समय इस देवी स्वरुप को न जानते हो?

जब नारी का अंशुक गिरना है गलत, किसी मर्द के सम्मुख,

फिर कैसे किसी मर्द के द्वारा किया हुआ श्रृंगार ही माना जाता है प्रमुख,

एक नारी माता का सृजन ना कर पाती है, हे माँ, ये दुनिया कैसी नीति अपनाती है।।

माँ काली के दर पर जब सब समान है,

तो क्यूं सर्जन के समय पुरुष को समझते महान हैं?

एक नारी ही जब जन्म देती है, तो क्यूं फिर अशुद्ध कैसे हो सकती है,

और अगर वो अशुद्ध है, तो एक पुरुष कैसे शुद्ध हो सकता है…

जन्म भी तो उसने नारी की कोख से लिया है,

फिर वो कैसे शुद्धि के नाम लिए आगे खड़ा है।

"माता ने कहा - जब मैंने ना भेद किया तुझे बनाने में,

तो तूने मेरे ही स्वरूप को कैसे पीछे कर दिया मुझे सजाने में ।

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