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पैदा हो बचपन में, बूढ़े में भी दो पैरों पर चलता है।
जवानी में नवाबी का शौक खूब चढ़ता है।
सज सवर कर खूब वो जचता है।
बचपन के खेल बुढ़ापा न समझता है।।

नवजात को साथ चाहिए मां बाप का।
बुढ़ापा भी मांगे साथ औलाद का।
दोनों में एक ही चीज भाती है।
अपनों के साथ से जिंदगी संभल जाती है।।

जोड़ तिनका तिनका संस्कार मां बाप सीखाते हैं।
अपनी हर खुशी त्याग कभी न जताते हैं।
रूठी हुई औलाद को कितने प्रेम से मनाते है।
हर खुशी उसकी झोली में डाल कभी न नाम अपना बताते है।।

नवजात था जब वो शिशु तब मां ने स्तनपान कराया था।
धीमी धीमी उसकी आवाज से घर आंगन चहचहाया था।
मां बाप ने मिलकर उसको लड़खड़ाते कदमों से आगे बढ़ना सिखाया था।
उसकी खुशियों को सबसे पहले मान सर माथे लगाया था।।

धीरे धीरे उम्र जवानी की आई।
अपनी नन्हे कदमों से बढ़ आगे उसने अब कामयाबी है कमाई।
सुंदर सी लक्ष्मी भी घर आंगन महकाई।
गुणवान पुत्र ने आ घर में रौनक चमकाई।।

फिर कहानी वही दोहराई।
अब बारी निभाने की आए।
बुढ़ापा ने कहानी है सुनाई...

नवजात दुनिया में मैं खाली हाथ आया था।
खूब जोड़ा और खूब रिश्तों को मैंने निभाया था।
जैसे बचपन सहारे से चलता था।
आज भी वही हाल बताया था।
बचपन में भी कदम डगमगाते थे।
और आज भी बुढ़ापे ने सहारे के लिए किसी को बुलाया था।
बस एक ही चीज अलग थी आज साथ जीवन साथी का पाया था।
पर अचानक हुई घटना ने उसका हाथ भी मुझसे छुड़ाया था।।

जिंदगी की सच्चाई को कुछ लफ्जों में सुनाता हूं।
असलियत जिंदगी की मैं तुम्हे बताता हूं ...

नहीं है मीत जिंदगी किसी की।
फलसफे सबके तराने है।
हकीकत बचपन बुढ़ापे की है एक सी।
दोनों सहारे से दूसरों के बिताने है।
लड़खड़ाते पंजों से चलकर लड़खड़ाते कदमों की कहानी है।
अफसोस कभी एक मां दस औलाद भी पाले प्रेम से।
फिर भी दस औलाद को बुढ़ापे में लगती बाप मां बेगानी है।।

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