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एक तरफ गौदान, गबन हैं,
एक तरफ़ हैं पंचवटी ।
एक तरफ हैं महल अटारी,
एक तरफ हैं पर्णकुटी ।।

एक तरफ हैं सुमन यहां पर,
एक तरफ हैं कृष्ण सरल।
करुण कथा कहने पर सबके,
होते रहे नयन सजल ।।

छंद अलंकारों से मिलकर,
काव्य सृजन कर बैठे है।
तन, मन, धन से मां हिन्दी का,
हम अर्चन कर बैठे हैं ।।

सिख, गोरखा, जाट, मराठा,
या फिर कोई सिन्धी है।
सबसे प्यारी भाषा जग में,
हमारी अपनी हिंदी है।।

जिस भाषा को विश्व समूचा,
पूज्यनीय हैं मान रहा।
आर्यावत में जिस भाषा का,
एक अलग स्थान रहा ।।

जिस भाषा में वेद पढ़े हैं,
कवियों ने काव्य लिखे ।
जिस भाषा में मीराबाई ,
तुलसी और रसखान लिखे।।

जिस भाषा की कविताओं में,
नव रस का आभास मिले।
कही मिले श्रृंगार,
वीर तो कहीं परिहास मिले।।

जैसे कल कल बहती गंगा,
सिंधु, सतलज, कालिंदी है ।
सबसे प्यारी भाषा में जग में,
हमारी अपनी हिन्दी हैं ।।

हिंदी मां का परचम लेकर ,
सारे जग में घूम गयी।
हिंदी माता पर गर्वित हो,
पागलों जैसा झूम गईं।।

हिन्दी ही तो भाषा केवल ,
जो मीठी है प्यारी हैं ।
महाविद्यालय में हिंदी की,
ऐसी क्या लाचारी है।।

सबसे प्यारी भाषा जग में,
हमारी अपनी हिंदी है।।

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