मैं होली में होली तेरी हरि होली में।
तन मन धन सब तुझ पर वारू ।
तुझको ही बस सदा निहारू ।।
मन ही मन तेरे पांव पखारू ।
जीवन भर बस तुम्हें सम्भारू ।।
तेरी वाणी है अनमोली हरि होली में।
तुमने ही यह जग उपजाया ।
कार्य कर रही तेरी माया ।।
जिन पर आप करो प्रभु दाया ।
उनको तुम्हारा भजन भाया ।।
अंत: की आंखें खोली हरि होली में ।
मैं तो रंग गई श्याम के रंग में ।
मिल जाता है श्याम ही मग में ।।
यह समा गया मेरी रग रग में ।
मैं देखूं छवि मुंदरी के नग में ।।
मैं रस में परवस भई हरि होली में ।
मेरे हृदयासन आ जाओ ।
अन्दर के सब दोष मिटाओ ।।
मुझको सदा सदा अपनाओ ।
मुझसे दूर नहीं तुम जाओ ।।
मक्खन मन की भव पीर हरि होली में ।