जिंदगी और मौत के बीच झूलती हुई जिंदगी को चुना मैंने।
मौत के पल पल करीब पहुंच जिंदगी को बुना मैंने।
लम्हें कम थे, पर थी कुछ हसरतें।
हसरतों को आगे पाया मैंने।
दिल से दिल का रिश्ता निभाया मैंने।
खुदको खुद से मिलाया है।
हर लम्हा मुस्कराया और रोते हुए हर पल को हंसाया।
रूठे हुए को मनाया,जिंदगी के हर रिश्ते को अंतिम लम्हा मान जी जान से निभाया।।
ऐसे खुद से खुद का रिश्ता निभाया है मैंने ,खुद से खुदको ही पाया है मैंने।।
कुछ ऐसा बताया है लोगों ने मुझे।
अपनों में अक्सर पाया है मुझे।
रूठ जाऊँ तो बात थोड़े मे भूल जाती हूँ।
कोई दिल भी दुखाए तो चल छोड़ कह खुद को बहलाती हूं।।
खुदगर्ज नहीं हो सकती हूं इसलिए खुदको अक्सर समझा लिया करती हूं।।
इंसान तो अपनी बात बोल बता देते है,
जानवरों का दर्द ना किसी ने जाना है।
इंसानियत मेरी पहले है अपनी जान को दूजा मान लिया करती हूं।
खुद से खुद का रिश्ता मै जान लिया करती हूं।
इंसानियत हाथों में लिए इंसान को अक्सर पहचान लिया करतीं हूं।।