इंसानियत इंसानियत कह खुद को तुम इंसान बुलाते हो,
पर क्या इंसान लायक हो तुम?
जो खुद को इंसान कहलवाते हो.
एक हमेशा चुप रहने वाला कुत्ता जब रोता है,
सोच उसको कितना दर्द होता है..
तू उसको मार भगाता है और अवशगुन बताता है,
अगले दिन वो कुत्ता दर्द से व्याकुल हो फिर चिल्लाता है,
पर उसका दर्द ना किसीको समझ आता है||
बेदर्दी की इम्तेहा तब होती है..
जब उस रात तू उसे रोटी देने से भी कतराता है,
दे लाठी मार भगाता है,
दर्द और भूख अब उसको दोनों उसे तड़पाती है,
इंसानियत के इन रक्षकों से अब उसे कोई उम्मीद ना नजर आती है||
इन इंसानों से अब उसने मदद की एक आखिरी उम्मीद भी तोड़ दी,
जीने की उम्मीद अब उसने छोड़ दी,
आखिरी साँस के साथ आशा भरी नजरों से निहार...
एक बार फिर निराशा वो पाता है,
और हमेशा के लिए सो जाता है||
सोचों किस दर्द की वो इन्तेहा रही होगी,
जब शर्मसार हुई इंसानियत पानी की तरह बही होगी,
तू किस हक से खुद को इंसान मानता है?
तू कितना इंसान है ये तो बस वो कुत्ता ही जानता है||
हजार पूजा पाठ उद्यापन तू कराता है,
पर एक जानवर को जान भी तू ना बचा पाता है,
तू चाहता तो वो आज साथ होता,
वो अपनों के पास होता||
क्यूँ नहीं समझते उसमें भी जान है,
उसमें भी सजीव की तरह प्राण है,
उसका भी अपना परिवार है,
बिछड़े है उसके अपने भी..
क्यूं इंसान इतना क्रूर और हर चीज को समझता कारोबार है??
एक जानवर के दर्द ने उसको मार दिया,
तुमने उसको मानूस होने का नाम दिया,
क्या एक बार भी उसके दर्द को महसूस कर पाए?
नहीं....
तो कैसे उसका दर्द अवशगुन कहलाये??

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