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इंसानियत से बड़ा कोई धर्म नहीं होता |
बेजुबान से बड़ा किसी का दर्द नहीं होता ||

वो नन्ही चिड़िया घोंसला जब बनाती है |
नन्ही सी चोंच में तिनके हजार उठाती है |
तिनका तिनका रख घर बनाती है |
अंडा रख उसे सेत बच्चे की उम्मीद लगाती है |
फिर कोई अंडा फूट उसमे से मुस्काता है |
कोई वही दम तोड़ रह जाता है ||

उससे पूछो दर्द की दास्तान वो बताती है |
बेजुबान से ज्यादा उस वक्त किसकी जान जाती है ||

फिर दर्द समेट उस बच्चे को हर मौसम बचाती है |
धूप ठण्ड आँच पानी से लड़ना सिखाती है |
उड़कर बादलों में फडफडाना बताती है |
बादलों में अठखेलियाँ खिलाती है |
उस वक्त कोई उसका हमदर्द नहीं होता |
मूक से बड़ा किसी का दर्द नहीं होता ||

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