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जीवन है अनगढ़ एक पत्थर|
निर्भर तुम पर क्या गढ़ते हो|
तृण सा बहते धाराओं संग|
या दुख अवरोध में पड़ते हो||
टुकड़े-टुकड़े यूँ मरने से|
एक बार मरें आनन्द सहित|
तुम टांग खींचते औरों की|
या हाथ खींचकर चढ़ते हो||
जीवन है अनगढ़ एक पत्थर|
निर्भर तुम पर क्या गढ़ते हो|
राह तक रहीं तुम्हारी अन्तर|
तुम समुन्दर के गोताखोर|
बन रहे हों तुम निश्चल जल की धारा|
या सिर्फ चिंतित हो रहे हो बोर||
जीवन है अनगढ़ एक पत्थर|
निर्भर तुम पर क्या गढ़ते हो|
धर्म प्रयासों में गड़ रहे हो खुदको|
या लग्नशील हो पथ पर|
राजवंशों सी है बात कोई|
या कुरूक्षेत्र बना रखा है कुछ गड़ कर||
जीवन है अनगढ़ एक पत्थर|
निर्भर तुम पर क्या गढ़ते हो|
अडिग है अधिकार|
या प्रदर्शन सा वार|
नतमस्तक हो लक्ष्य पर|
या प्राप्त परस्पर आधार||
जीवन है अनगढ़ एक पत्थर|
निर्भर तुम पर क्या गढ़ते हो|
अध्याय है मेहनत|
या अध्यात्म उपनिषदों में है मान|
तुम शीर्ष मार्ग पर हो|
अथवा तिथि है प्राण||
जीवन है अनगढ़ एक पत्थर|
निर्भर तुम पर क्या गढ़ते हो|
दुनियां की ऐसी दो आंखे|
लग्न है जिनमे देखा|
कार्य जिनके रंग में रंगी है जैसे|
हो कोई जीवन रेखा||
जीवन है अनगढ़ एक पत्थर|
निर्भर तुम पर क्या गढ़ते हो||