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एक ओर होती जहां चिंता मुक्ति।
एक ओर अहम जुड़ जाता।
जहां घटती संख्या आकांक्षाओं की।
तो एक तरफ गला खुशियों का घुट जाता।।

सूरज के चढ़ते ही अम्बर ,चांद का पहरा हट जाता।
जीवन में कुछ मिलता है,तो कुछ जीवन से कट जाता।।

अच्छा शरण तुम्हारी पाता।
बुरा भी संग संग प्रीत लगाता।
अच्छा बुरा में एक चीज भाती।
दोनों का ही साथ कुछ पलों में गुजर जाता।।

सूरज के चढ़ते ही अम्बर ,चांद का पहरा हट जाता।
जीवन में कुछ मिलता है,तो कुछ जीवन से कट जाता।।

ना छंद सी धार,ना अलंकार सा राग।
ना होता भूमि सा आधार,ना होता कोई अवतार।
मोह वश होता बंधन।
लिपटा जैसे सर्प सा चंदन।
हर सार जैसे प्रभंजन पतवार हो जाता ....
जीवन में कुछ मिलता है,तो कुछ जीवन से कट जाता।।

अक्श धरा पर होता देह।
मन में हो बैठा संदेह।
बसंत अवतरित होकर भी कर दे पुष्टि।
ना सत्य समझ आए मृषा आए नजर सृष्टि।।
अल्प अनुकंपा चित्त में जगाता।
जीवन में कुछ मिलता है,तो कुछ जीवन से कट जाता।।

तारणि (नाव ) गाछ पर चढ़ाता।
हिम को पाषाण बताता।
बुद्धि का भेद न नजर आता।
सूरज के चढ़ते ही चांद का पहरा हट जाता।
जीवन में कुछ मिलता है,तो कुछ जीवन से कट जाता।।

जब मात्र मुग्द होता बन्धन
होता साथ वैराग्य का अभिनंदन।
मिलते साथ हजारों राग।
अमर्ष भटकाए भाग्य
कोदण्ड भी करवाल सा हो जाता।
जीवन में कुछ मिलता है,तो कुछ जीवन से कट जाता।।

सुख भटके द्वार, होता ऐसा संसार।
होता ऐसा प्रतीक ये परिवर्तन।
हो जाए चाहे अक्स समर्पण।
देह की ज्योति का भी त्याग हो जाता।
जहां घटती संख्या आकांक्षाओं की।
तो एक तरफ गला खुशियों का घुट जाता।।

सूरज के चढ़ते ही अम्बर ,चांद का पहरा हट जाता।
जीवन में कुछ मिलता है,तो कुछ जीवन से कट जाता।।

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