धरती गज कोसन चले, सूर्य जले दिनमान।
बिनु संघर्ष न पाई ए, जगत बीच सन्मान।।
कृष्ण राम हों, ईशू हों, या हों शिवहि महान।
त्याग किया, संघर्ष कर, और किया विषपान।।
हरिश्चंद्र, शिवि , नल यहाँ, और अशोक महान।
जब संघर्षों में रहे, तब ही बने महान।।
बिन संघर्ष जहान में, नर तो है अज्ञान।
संघर्षों में स्वर्ण भी, चमके होए सुजान।।
जो संघर्षों में जिया, उसको जीवित मान।
बाकी तो निर्जीव से, खाते सोते जान।।
जीवन एक संघर्ष है, सहज इसे स्वीकार।
मिथ्या सुख के स्वप्ना में, उलझा है बेकार।।
तप कर सोना चमकता, कट कर हीरा जान।
विष पीकर के शिव हुआ, गिर कर गंगा जान।।
जो दुःख को सहती रही, लगा कृष्ण का ध्यान।
वह तो मीरा पा गई, कीर्ति और यशगान।।