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चार लोग..
क्या कहेंगे 4 लोग, क्या सोचेंगे 4 लोग...
कौन हैं ये चार लोग????
सारी ज़िंदगी जिनका सोच हम रह जाते हैं..
बुरे वक्त में वही अपना रंग दिखाते हैं।
क्यूं सोचते हम इतना है?
क्यूं खुद को खोजते हम इतना है?
बंदिशों में बांध खुद को क्यूं रुक जाते हैं?
क्यूं तमन्नाओं के दीए दिल में ही बुझ जाते हैं?
क्या वह 4 लोग हमारी जिंदगी में इतना महत्व पाते हैं?
फिर क्यूं हम अपनी जिंदगी उनके हिसाब से चलाते हैं?
जब जब आई कोई दुविधा है।
तब तब उनसे मिली न कोई सुविधा है।।
कहां गए विपत्ति में क्यों नहीं आते सामने हैं।
क्या अब नहीं इज्जत के पैमाने उन्हें आंकने हैं।
तोड़ दो ये बंदिशें, जी लो ये दिन...
न सोचो इन 4 की,सोच लो रह लेंगे हम इन बिन।।
ये वक्त ना वापस आएगा, समय फिर ना इन चिरागों को जलाएगा..
कुछ घड़ियां अभी भी बाकी हैं,जी लो..
फिर ना ये वक्त यूं थम पायेगा।।