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दैत्य दारूक ने ले ब्रम्हा से वरदान अच्छा अवसर पाया था|
देवों और ब्राह्मणों को अग्नि समान दुख में जलाया था|
देवलोक में भी भारी मार मचाई थी|
मानों दैत्यों की सेना अब चारों ओर से घिर आयी थी||
दैत्य मानो तोड़ लाए थे देवलोक के सितारे|
अब तो बस भोलेनाथ के पास ही थे जुगनू रूपी उपाय सारे||
देवों ब्राह्मणों ने सारी बात भगवान शिव को आ बताई, सुन बात माँ पार्वती मुस्कराई|
अपने अंश को भगवान शिव के अंश में प्रवेश कराईं |
कंठ के विष से मिल माँ ने अवतार महाकाली का पाया|
अम्बर नीला, युग युग अद्भुत लीला, अलख जगाया|
माँ का रूप देख जैसे देवों और ब्राह्मणों तक अंग अंग सरसराया||
माँ दिखीं वीरता की अवतार, किया हुंकार से दुष्टों पर वार|
भरी आक्रोश, हुआ दैत्यों का संहार|
दैत्यों के खून से भरा कटोरा, पीती गयीं माँ|
अब मानो माँ के यही प्रिय खिलवाड़||
उदित हुआ सौभाग्य, मुदित देवलोक में उजियाली की आशा छाई|
माँ दुर्गा का यह प्रचंड रूप दुष्टों पर काली घटा घेर लाई|
चूडिय़ां, आभूषण, अस्त्र शस्त्र से सुशोभित माँ अति भायी|
माँ ने अब तो संसार पर भी दया ना खाई||
माता महाकाली का क्रोध था चरम|
हुंकार मात्र से दारूक सेना हो गयी भस्म|
क्रोध की ज्वाला से समस्त संसार जलने लगा|
मानों लोक मोम की भाँति पिघलने लगा||
माता बढ़ती गयीं, तेज होती गयी उनके क्रोध रूपी हुंकार|
ना हुआ शांत क्रोध, सबने लगाई पुकार|
हर दरकार की हुई हार|
बस अब प्रभु भोलेनाथ से ही थे आसार||
माँ का क्रोध हुआ हद से पार,संकट विषम अपार|
प्रभु हुए अपनों वचनों पर सवार|
पर माँ ना मानी, करतीं रहीं वार पर वार||
देख माता का दिव्य अवतार, होते रहे शिकार पर शिकार|
प्रभु लेट गए धरती माँ के आगोश, महाकाली बढ़ती रहीं निरन्तर पार|
पड़ा पैर महादेव पर.. रुक गए माँ के कदम, जीभ हुई बाहर|
देख हैरानी से माँ महाकाली का रूप दिखा प्रचंड और दिखा दिव्य अवतार||

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