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मरने के बाद मेरे लिए एक अलग ही दिखावा हो रहा था|
जैसे एक खेल के दरमियान मैं सो रहा था||
प्यार से मुझे जगाया जा रहा था|
मुझे बहुत चाहते हैं वो, ऐसा बताया जा रहा था||
भरपूर प्यार लुटा रहे थे आज वो भी|
जिनके कारण आज मुझे मरण शैय्या पर सुलाया जा रहा था||
जो मुझे देख फूटी आँख कभी भाते न थे|
आज मुझे उनकी जान का टुकड़ा बताया जा रहा था||
जो कभी बोलते भी ना थे,
आज.. उनके द्वारा मौत के शैय्या पर सोया मुझे उठाया जा रहा था||
कैसी अजीब ये घड़ी थी|
हर किसी की आँखों में आज मेरे लिए नमी थी|
यकीन करना मेरे लिए आसान नहीं था|
जैसे वो मेरे लिए अब श्मशान नहीं था||
हमेशा के लिए मेरा सोना इतना हसीन हो रहा था|
जब मैं उस शैय्या पर सो रहा था||
वो घड़ी भी आयी थी|
जब लोगों ने मुझे जलाने की आजमाइश जताई थी|
होड़ हो रही थी ऐसे मुझे जलाने की|
जैसे बोझ समझ रहे हो मुझे जमाने की||
एक वक्त वो भी आया|
जब मेरी चिता में आग मेरे किसी अपने ने लगाया||
देख कलेजा छारछार हो गया|
जब मैंने देखा मैं अपनों के लिए मैल हो गया|
बडी सफाई दिखा रहे वो|
तन से अपने मैल का कतरा कतरा हटा रहे थे वो||
सर्दी थी कुछ अपनों ने मेरी ही चिता से हांथ लिए सेख|
दिल मेरा छन्नी हो गया ये देख||
चुप छाप लेता सब का अस्ल चेहरा पहचान लिया|
आज मैं अपनी उन अंतिम घड़ियों में औकात सब की जान लिया|

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