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एक एक तिनका जोड़ घर बनाया था।
महक छोड़ घर महकाया था।
ना थी खबर कोई आ उजाड़ जायेगा।
उस परिंदे ने बड़े अरमानों से घर सोच उस घोंसले को बसाया था।।
यहां वहां से भाग भाग कर एक एक तिनका वो लाया था।
एक एक बूंद से उस आशियां को बचाया था।
अच्छे भले घर ना उसको भाते थे।
आत्मसम्मान जैसे उसके अंग अंग में समाया था।।
तिनका तिनका जब लाया था ।
चोंच के सहारे उसने वो अपना छोटा सा संसार बनाया था।
कभी कुछ तिनके नीचे गिर जाया करते थे।
पर घर बनाने की सोच से फिर साहस भरते थे।।
एक सपना उस परिंदे ने भी सजाया था।
घर जब उसने अपना बनाया था।
अंडे सेत लंबे समय उसने आस लगाई थी।
उस अंडे से निकले बच्चे को देख अरसे बाद खुशियां छाई थी।।
जब एक नन्हा परिंदा उस घोंसले में चहचाया था।
उसके आने की चहचहाट ने एक नया जगत उस पंछी के लिया बनाया था।
उसकी ची ची प्यारी सी ध्वनि विस्तारक बताया था।
जग भर की खुशियां से उस चिड़िया का मन हरसाया था।।
फिर कोई दरिंदा आया।
इंसानियत की नजर ना आई कोई छाया।
चिड़िया को निशाना उसने बनाया।
ऐ हैवान,नन्हें परिंदे पर भी तरस ना खाया।
कभी सोचा न था उस परिंदे ने ऐसा मंजर जो सामने आया।
दर्द को वो मूक बयां भी न कर पाया।
खबर नहीं थी कोई आ,ये आशियां यूं उजाड़ जायेगा।
कोई ऐसे हैवानियत दिखाएगा।।
क्या कसूर था उन परिंदे का।
जो उसकी मेहनत रास न आई।
आशियां उजाड़ दिया उसका।
क्या दर्द से हमदर्दी भी न पाई।।
मूक के दर्द का असर नहीं।
इंसानियत उसके पास नहीं।
शायद अब मूक को सपनों की भी आस नहीं।
शायद अब उन्हें कोई प्यास नहीं.? ???