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आओ एक बात बताती हूँ|
इंसानियत और उस के प्यार से भरी एक मूक गाथा सुनाती हूँ||
एक थी प्यारी सी बिल्ली|
वो यहां वहाँ रोज घूम आती थी|
दर बदर खाने के लिए भटकती भूख को अपनी समझाती थी|
कभी मिल जाए कुछ तो भूख मिटाती थी|
तो कभी भूखी ही सो जाती थी||
एक दिन उसको एक ठिकाना मिल गया|
भूख मिटाने को सहारा मिल गया|
एक घर में वो धोखे में जा बैठी|
उसके मालिक से नाता जोड़ बैठी||
सिर्फ भूख के लिए आई बिल्ली ने सबको अपना बना लिया|
देकर प्यार सबका प्यार पा लिया|
सबके साथ रज़ाई ओड़ कभी सो जाती|
कभी तकिये पर सिर अपना सहलाती|
कभी हीटर पर बैठ ठण्ड अपनी मिटाती|
कभी पायल संग खेल घर अंगन में छम छम छनकाती||
जब वो माँ बनी तब विश्वास वो दिखाती है|
अपने हाल हुए बच्चे को उठा मुह में मालिक के पास प्यार से रख जाती है|
वो बच्चा भी बड़ी नाजों से पलता है कोमल हो बढता है|
कभी अंगन में अठखेलियाँ करता है ||
तो कभी बीमार हो उदास हो जाता|
नखरे कर दवा पीता तो कभी खाते खाते गोद में सो जाता|
तो कभी मन भर प्यार सब पर लुटाता||
वह मूक है ना कभी एहसास हुआ|
जानवरों के प्यार से ऐसे हमें भी प्यार हुआ|
वो प्यारा सी बिल्ली एक सीख दे गयी|
बिना बोले प्यार का मीत दे गयी||

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