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ना रूप चले साथ में,ना रंग करे काम|
जैसे बोली वाणी,हुए वैसे काम|
भलीभूत भाग्य प्रकाश के, रहे ऐसा श्रम|
शक्ति सा हो प्रस्ताव, ऐसा करें कर्म||
ना रूप चले साथ में,ना रंग करे काम|
जैसे बोली वाणी,हुए वैसे काम||
हो ना कभी ऋण, ऐसा हो काम|
अनीति से मिले, ना कभी दाम|
ना नारी का हो अपमान|
ना नर को भेद के अभाव में मिले मान|
कर्म हो ऐसा जिससे मिले सम्मान|
ना रूप चले साथ में,ना रंग करे काम|
जैसे बोली वाणी,हुए वैसे काम||
तपस्या हो तपस्वी सी|
ममत्व हो मनस्वी सी|
पुण्य का हो ना कभी माप|
प्रेम का हो सदैव जाप|
कर्म ही हो हर स्थान पर व्याप्त||
ना रूप चले साथ में,ना रंग करे काम|
जैसे बोली वाणी,हुए वैसे काम||
सम्मेलन सा समूह स्नेह का, भक्ति हो सती सी|
तेज हो कृष्ण के मुख सा, वाणी हो प्रेम सी|
कर्म का हो प्रभाव, बस ऐसा हो अभाव|
ना ही किसी के लिए हो नफरत सार|
सुकून मिलता रहे सबको, ऐसे हो आसार||
ना रूप चले साथ में,ना रंग करे काम|
जैसे बोली वाणी,हुए वैसे काम||
नारी में हो शक्ति, मन में हो भक्ति|
शिव सा हो प्रेम, मन में हो देव देव देव|
ना किसी के लिए हो बैर|
फिर मन खुशियो की करे सैर||
ना रूप चले साथ में,ना रंग करे काम|
जैसे बोली वाणी,हुए वैसे काम||

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