विधाता की एक रचना है न्यारी,
जो कहलाती है नारी।
विविध रूपों में नारी,
लगती है बड़ी प्यारी।।
नारी शक्ति के रूप में जो संसार पर है भारी,
वो है सम्मान की उचित अधिकारी।
नारी सृष्टि की जगत जननी है,
हर युग की कथनी करनी है।।
नारी घर की फुलवारी है,
हमसफर बन करती काम भारी है।
नारी मायके का मान है,
ससुराल की शान है।।
भाईयों की लाडली बहन है,
संघर्षों की कठोर तपन है,
सीता रूप में करती अत्याचार सहन है।
नारी में सिमटे कितने गम हैं,
कथाएं नारी की रोचक और अहम हैं,
लेकिन व्यथाओं से आंखें नम हैं।।
पार दिलाती पति को,
ऐसी पार्वती रूप में पति की अर्धांगिनी है,
नारी पुरुष की जीवन संगिनी है।
बेटी रूप में नारी हर मां-बाप की दुलारी है,
और उचित मान-सम्मान की अधिकारी है।।
यशोदा, मीरा, राधा रूप में झलकता नारी का प्यार है,
काली, गौरी, दुर्गा रूप में होता दुष्टों का संहार है।
सरस्वती रूप में नारी अत्यंत अबूझ ज्ञान है,
एक नारी अनेक रूपों में समाज का सम्मान है।।
नारी बिन पूरा घर सूनसान है,
नारी बिन अधूरा हर इंसान है।
अत्यधिक स्वच्छंदता से नारी का नुकसान है।
इस बात का हर स्त्री को रखना ध्यान है।।
नारी को रखना समाज का मान है,
नारी शक्ति के रूप में
नारी का हर रूप महान है।
नारी एक रूप अनेक,
इस रूप में 'अजय' करता नारी का बखान है।
'अजय' की ओर से हर नारी को 'अजेय' प्रणाम है।।