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आह्वान करता हूँ युवाओ!
मत खोओ व्यर्थ जवानी।
झुका हुआ सिर,लटके कंधे,
कमर पतली ज्यों कमानी।।
तेजहीन मुख काया क्षीण,
दिखने में लगते अति दीन।
मन में उत्साह न कोई उमंग,
कुंठित से लगते अति हीन।।
सुविधाओं के जंजाल में फँस,
काठ सा अकड़ गया है तन।
किंकर्तव्यविमूढ़ हुए से मित्र!
आभासी-दुनिया से त्रस्त मन।।
नर सहज सुलभ व्यवहार क्या?
अनुभव नहीं किया कभी तुमने।
पढ़ना - लिखना भी छोड़ दिया,
बिन समझे सबकुछ लगे सुनने।।
गर बदले नहीं हालात अपने,
मारेगी बेढब जवानी तुम्हें।
क्या पाया क्या खोया तुमने,
न याद रख सकोगे तुम उन्हें।।
विस्मृति का शिकार होकर,
जीवन मृत्यु-शैय्या सी लगे।
है वक्त अभी भी चेत उठो,
हौओगे भाग्यशाली जो जगे।।
गर्मी,सर्दी,बरसात ऋतु मिल,
भारत - वर्ष को हैं हरषाती।
नव - वर्ष का है संदेश यही,
सुख-समृद्धि चेतना ही लाती।।
साधनों पर निर्भर रहो न सदा,
तन को न बनाओ कभी अपंग।
उद्यम साधो बनकर योगी,
पुरूषार्थ करो युवा नित्य अभंग।।
मत समझो चुनौती जीवन को,
जीवन बहता निर्मल झरना।
सुख देता सभी को वह बहकर,
उठ युवा, ऐसा तुम भी करना।।
नव - वर्ष आगमन कर रहा,
बदलो खुद को संदेश गहो।
छोड़ो लजाना अवस्था पर,
क्रांति कर पंथी अटल रहो।।