ओहो किस्मत के रखवाले....

पेट के खातिर बना भिखारी, फिरते दर दर मारे|
ओहो किस्मत के रखवाले, किस्मत फूटी आश ना रूठी|
फिर पैर में पड़ गए छाले, ओहो किस्मत के रखवाले||

चला था दो रोटी की खोज में,दो रोटी भी ना हुई नसीब|
हुई चाँदनी रात भी,मौसम की बरसात भी|
पर ये परिवर्तन किसको भाये|
प्राप्ति चाहिए रोटी की, भूख का व्रत ना अब रख पाए||

पेट के खातिर बना भिखारी,फिरते दर दर मारे|
ओहो किस्मत के रखवाले....

मौत का अदृश्य घेरा, है घिरा चहुं ओर है|
मरने वाला है बेफिकर, या बात कुछ और है|
है सिकुड़ता हर पलों में, पास आता जा रहा|
है अभी सब दूर जानें, ना करे कोई गौर है||

पेट के खातिर बना भिखारी,फिरते दर दर मारे|
ओहो किस्मत के रखवाले...

किस घड़ी यह रूबरू, होगी भला किसको पता|
और इसका रूप कैसा, जाने होगी क्या खता|
मृत्यु के नजदीक हैं पर, दिख रहे मुहजोर है|
है अभी सभी दूर जाने, ना करे कोई गौर है||

पेट के खातिर बना भिखारी,फिरते दर दर मारे|
ओहो किस्मत के रखवाले...

मिल जाए एक निवाला भी, लगता अब वो भर पेट है|
काश इंसानियत ही दिखा दे कोई एक टुकड़े की|
वो भी लगती अब भेंट है|
ऐसे ऐसे करते "प्रेम" ना कोई ठौर है|
है अभी सब दूर जाने,ना करे कोई गौर है||

पेट के खातिर बना भिखारी, फिरते दर दर मारे|
ओहो किस्मत के रखवाले....

दम घोट रही है जिंदगी, कर ली अब सारी बंदगी|
ना प्रभु से मिले अब कोई आस है|
इन्सानियत के सौदागरों से मिले सिर्फ नाराच है|
अब छोड़ रहा है शरीर आत्मा को|
भूख है अभी भी, हर साँस मांगे एक निवाला ये बात और है|
देख कर भी कर रहे सब अनदेखा, ना करे कोई गौर है||

पेट के खातिर बना भिखारी, फिरते दर दर मारे|
ओहो किस्मत के रखवाले, किस्मत फूटी आश ना रूठी|
फिर पैर में पड़ गए छाले, ओहो किस्मत के रखवाले||

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