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गरीबी भी इंसान पर क्या कहर ढहाती है|

रोटी कपड़ा मकान तक को तरसाती है|
गरीबी ही इंसान को इंसान में फर्क बताती है|
वर्ना भगवान के यहां से तो सबके लिए सांसे एक समान आती है||
एक अमीर का बच्चा जिस खाने के लिए नखरे दिखाता है|
गरीब का बच्चा उस खाने को देख ललचाता है|
ना मिले तो कूडे में से उठा निवाला वो खाता है|
भूख से जब व्याकुल वो हो जाता है||
अन्न का आदर तो गरीबी ही सिखाती है|
वर्ना अमीरी में तो छप्पन भोग की क़ीमत भी ना जानी जाती है||
अमीरी जिन कपडों में शान दिखाती है|
साहब गरीबी बेचारी तन ढकने में भी खुश ही नजर आती है||
मिल जाए एक खिलौना तो सारे जहां की खुशियां वो पाता है|
जनाब वो गरीब है वो हर हाल में मुस्काता है||
छोटी छोटी खुशियों से वो दामन अपना भरती है|
जनाब ये गरीबी है हमदर्दी से ना किसी के गले लगती है||
पास ना कोई बैठाता है|
देख गरीब ना कोई गले लगाता है|
गंदे हो कपड़े तो दूर भागता है|
अरे कैसे बताऊँ गरीब है साहब°°
हर वक्त मिल पाए साफ कपड़े इतना ना इसके पास आता है||
खुदा की देन है गरीबी भी
जो किसी ने पाई है|
इसी गरीबी ने तो इंसान की परख करायी है|
वर्ना सांसे तो भगवान के घर से सबके लिए बराबर ही आयी है||

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