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प्रबल रहो अडिग रहो|
हो चाहे घनघोर विकट घटाएं|
तुम लक्ष्य पर अपने सटीक रहो|
तप रहे चाहे जप रहे|
दो वार उस वीर का|
सूर्य जैसे तप रहे |
जैसे पर्वतों से निकले नीर रहे|
ऐसे विश्वास तुम्हारा वीर रहे|
प्रबल रहो अडिग रहो|
हो चाहे घनघोर विकट घटाएं|
तुम लक्ष्य पर अपने सटीक रहो||
अग्नि सा जब तुम तपोगे|
समझ लेना सोने सा प्रखर निखरोगे, हीरे सा दमकोगे|
ना तुम हार कर रुक जाना|
गिर भी जाओ तो गिर कर फिर उठ जाना||
प्रबल रहो अडिग रहो|
हो चाहे घनघोर विकट घटाएं|
तुम लक्ष्य पर अपने सटीक रहो||
तुम माटी के वो पुतले हो|
जिसने माटी में ही फूल खिलाए है|
माटी को सर माथे लगा|
माटी के ही लाल कहलाए हैं||
प्रबल रहो अडिग रहो|
हो चाहे विकट घटाएं|
तुम लक्ष्य पर अपने सटीक रहो||
हो हजार आपदाएं|
चाहे रास्ते हजार बार धुंधलाए|
मंजिल ना धुंध से दिखलाए|
मेरे वीर तुम कदम पर कदम बढाते जाना|
हर कदम के साथ नए रास्ते दिखते जायेगे|
तुम बस लक्ष्य को अपने गले लगाते जाना||
मेरे वीर तुम कदम पर कदम बढते जाना|
वीर तुम कदम पर कदम बढते जाना|
हो चाहे घनघोर विकट घटाएं|
दावेदार बन घोषित प्रमाण दिखाते जाना।।