मैं प्रेम हूँ, तेरा कान्हा।
तेरा हर जन्म का राही।
तेरे बिना अधूरा हूँ।
जैसे राधा बिना वृंदावन की साही।।
तेरी हँसी में था जो मधुर राग।
अब वो सुर सूने हैं।
तेरे बिना कान्हा।
बांसुरी के गीत भी अधूरे हैं।।
जहाँ तू थी, वहीं मेरा संसार था।
और वहीं था मेरा विश्राम।
अब हर राह पर तेरा नाम है।
पर तुझे खोजने में कदमों को नहीं विराम।।
तू थी तो हर रंग में प्रेम था।
हर धड़कन में तेरा एहसास।
अब विरह के बादलों में भीगता हूँ।
बुझा नहीं, पर आज भी हूँ उदास।।
तेरी राहों में अब भी।
जलाए रखा है उम्मीदों का दिया मैंने।
तेरे लौट आने की आस लिए।
क्या-क्या नहीं किया मैंने।।
चाहे समय बदल जाए।
चाहे जग हो जाए पराया।
तेरा कान्हा आज भी वही है।
जिसने तुझे अपनी धड़कनों में बसाया।।
राधे-कृष्ण के प्रेम की तरह।
मेरा प्रेम भी इंतज़ार में बना पक्षी होगा।
हर जन्म में तेरा इंतज़ार रहेगा।
मेरा यह प्रण ही मेरे प्रेम का साक्षी होगा।।
कभी तो लौटेगी तू।
मेरे मनमंदिर के आंगन में।
जहाँ तेरा कान्हा अब भी खड़ा है।
प्रेम के संग दामन में।।