शुभ अवसर की घड़िया कहती सुन, कोयल दादुर शंख बजावन।
रजत घनप्रिया जयघोष करें जब, आगम सावन है मनभावन।।
अभिनव लगती धरती कहते सब, आज कहे सब सावन पावन।
जलधर बरखा बनते पनिहारन, दृश्य लगे अति आज सुहावन।।
टिप -टिप बरसे बरखा महषी अब, बादल अंबर देख विमोहित।
अनुपम लगता दृश ये हमको अब, रंग हरा बहता पृथु शोणित।।
किसलिय करती नव रूपम मंडन, झूल रही लतिका सुन रोहित।
सरगम स्वर प्रेमिल सी लगती धुन, चित्त करें अब प्रेम स्वघोषित।।