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मैं शिव हूं शिव में में हूं शिव मुझमें हैं यह कहते ज्ञानी।
जो कल्याण करत संहारक हैं शक्तिमय जो है सब जानी ।।

मैं नहीं चित्त, मन, बुध्दि हूं, न अहंकार मैं सुन प्रिय वानी।
न कान ,जीभ ,न घ्राण, नेत्र, न व्योम ,भूमि न तेज हवानी।।
संत चिद आनंद शिव रूप महेश्वर महादेव कहते नर ज्ञानी।

न पंच प्राण, न पंच वायु, न सप्त धातु ,न पंच कोष हूं।
न वाक, पैर, न हाथ उपस्थ, न पायु मैं पोषक पोष हूं।
संत चित आनंद स्वरूप समझ मुझमें ही है शक्ति समानी।

न राग द्वेष ,न लोभ मोह ,नहीं मद मत्सर के भाव भरे हैं।
न धर्म अर्थ ,न काम मोक्ष सब दोषों से हम सदा परे हैं।
सत चित आनंद स्वरूप रहूं मुझको ही समझ लें तू अज्ञानी।

न पुण्य पाप ,न सुख दुख, न मंत्र तीर्थ, न वेद यज्ञ मैं।
न भोजन भोज्य भोक्ता हूं, अरु न तुम तुम हो न मैं हूं मैं ।
संत चित आनंद स्वरूप कहो मैं शिव हूं सुन ले यह प्रानी।

न जन्म मृत्यु, न जाति भेद, न पिता और न माता हूं।
न बन्धु मित्र, न गुरु शिष्य , सृजक पालक विधाता हूं ।।
संत चित आनंद स्वरूप रहूं निराकार जाने हमें ज्ञानी।।

मैं निर्विकल्प संकल्प रहित , आकार नहीं व रूप नहीं।
विमुक्त तत्व सर्व इन्द्रिय सर्वत्र मैं यत्र तत्र सर्वत्र सही ।
मैं सदा रहूं सर्व समत्व रहूं और न मुक्ति हूं न बंध कहीं।
संत चित आनंद स्वरूप सदा कहते मुझको ज्ञानी व ध्यानी।

मैं शिव हूं शिव में मैं हूं शिव मुझमें हैं यह कहते ज्ञानी।
जो कल्याण करत संहारक है शक्तिमय जो है सब जानी ।।

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