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युद्ध की बेला पे कहाँ ये शांति की पुकार है।
इस पार है उस पार है बस युद्ध बेशुमार है।
जो खड़ा कुरुक्षेत्र निज में देशहित तैयार है।
देश पर ये जान सौ सौ बार अब निसार है।।

युद्ध की दहलीज पर खड़ा अब इंसान है।
मुल्क की ही खैरियत जान हर कुर्बान है।
न हिंदू है कोई यहाँ न कोई मुसलमान है।
तेरा हिंदुस्तान है ये मेरा भी हिंदुस्तान है।।

हर शख्स भारत वर्ष की ही बस संतान है।
हाँ में भी हिंदुस्तान हूँ तू भी हिंदुस्तान है।
चिरकाल का पैगाम ये ही बस मुकाम है।
एक जुटता हमारी दुश्मन से इंतकाम है।।

बोझ कंधों अपने भी तो मित्रों तमाम है।
लाज थोड़ी सी यही हर तरफ अवाम है।
सुन ले दुश्मन ध्यान से मात्र यह पैगाम है।
हिंद के रणबांकुरों को हमारा सलाम है।।

दुश्मनी के अंत का यहाँ खास इंतजाम है।
हिंद की फ़ौजों देखो कब किया आराम है।
'सिंदूर' के आगाज से मचा क्यूँ कोहराम है।
छाती खोल कर रख वाकी अभी अंजाम है।।

देश की माटी का हर कण तीर्थ स्थान है।
इस मुल्क का हर शख़्स प्रौढ़ हिंदुस्तान है।
सिंदूर न प्रतीक बस जीता हुआ निसान है।
मा भारती की अस्मिता की यह पहचान है।।

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