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था कोई इस संसार में,जिसको छोड़ना मजबूरी थी बीच मजहार में,दुख का समुंदर था जैसे बर्बादी में,लोगो को लग रहा था हम नाच रहें हो जैसे आबादी में,समझाना जैसे मुश्किल था,दिल अपना भी अब भटकती मंजिल था,