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था कोई इस संसार में,
जिसको छोड़ना मजबूरी थी बीच मजहार में,
दुख का समुंदर था जैसे बर्बादी में,
लोगो को लग रहा था हम नाच रहें हो जैसे आबादी में,
समझाना जैसे मुश्किल था,
दिल अपना भी अब भटकती मंजिल था,

कुछ बातों थी जो रह गई,
कुछ कहीं थी,जो वो भी अनकही ही दरिए में बह गईं,
सोचते वक्त आंख भर आती है,
समुंदर बन एक तकिए के भीतर ही समा जाती है,

हर पल हर लम्हा जैसे था अनजाना,
कुछ पल की बातों में लगता है अब वीराना,
अनकही अनसुनी बातों का दौर अब छूट गया,
रिश्ता मेरा अब उससे टूट गया।।

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