Photo by Annie Spratt on Unsplash

यह स्वीकारने में मुझे तनिक भी संकोच नहीं है कि भूगोल में मेरा हाथ बहुत पहले से तंग रहा है I यह अजीब विरोधाभास है कि जब भी कोई मुझे राह बताने के लिए दिशा निर्देश देता है तो में दिशाहीन हो जाता हूँ I 'दाए मुड़ जाना ' या 'बाए मुड़ जाना ' तक तो बात समझ में आती है किन्तु जैसे ही उत्तर, दक्षिण, पूरब और पश्चिम का उल्लेख होता है तो मैं बिन पिए ही भटक जाता हूँ I

कभी बचपन में अवश्य पढ़ा था कि यदि आप उत्तर कि तरफ मुँह करके खड़े हो तो बाए हाथ पर पश्चिम होगा, दाए हाथ पर पूरब और पीठ पीछे दक्षिण l इस पाठ में परेशानी का सबब यह है कि पहले यह तो पता हो कि उत्तर किधर है I

भूगोल में अपनी अयोग्यता के बावजूद मुझे कोई विशेष तुच्छता का आभास इसलिए नहीं हुआ क्यूंकि संसार का बहुत प्रसिद्द नाविक, कोलंबस, भी अपनी भरी भरकम दूरबीन और नक्शों के रहते हुए भी भारत की खोज करते हुए अपने गंतव्य से हज़ारों मील दूर अमेरिका पहुंच गया था l भारत से मसाले आयात करने का मार्ग तो उसे नहीं मिला था पर मुझे लगता है कि उस समय लोगों ने उसकी इस भूल की बहुत मसालेदार कहानिया अवश्य बनायी होंगी l कोलंबस के मुकाबले तो मैं रास्तों में बहुत कम ही भटका हूँ l

करीब साल भर पहले जब मेरा नया घर बन कर तैयार हुआ तो कुछ शुभचिंतक यह अक्सर पुछा करते थे कि घर किस दिशा की तरफ खुलता है l मुझे यह बात बिलकुल समझ नहीं आयी कि इस बात से क्या अंतर पड़ा कि घर किस दिशा कि तरफ खुलता है l किन्तु मैंने यह पाया कि वास्तु विशेषज्ञों के लिए यह जानकारी बहुत महत्त्वपूर्ण मानी जाती है l अपनी अज्ञानता न दर्शाते हुए मैं उनको बताता था कि सूर्य उस तरफ से उगता है तो घर का वह हिस्सा पूर्व की तरफ है l वास्तु विशेषज्ञ मित्र तब पूरी गंभीरता से मुझे समझाते कि मेरा घर दक्षिण पूर्व कि तरफ खुलता है l अब यह बात अलग है कि यह जानकारी मेरे मस्तिक्ष में अधिक समय तक टिक नहीं पाती थी l जब कभी कोई दूसरा वास्तु विशेषज्ञ मित्र पहली बार घर आने पर वही सवाल पूछता तो मैं उसे फिर वही जवाब देता कि सूर्य उधर से उगता है तो घर के उस तरफ पूर्व है l

अभी पिछले दिनों मुझे गौहाटी जाना पड़ा l किसी तकनीकी कारणवश उड़ान एक घंटे विलम्ब से उडी जबकि यात्रिर्यों को पूर्व निर्धारित समय से ही जहाज में बैठा दिया गया था l स्वाभाविक है कि इस विलम्ब से यात्री काफी क्षुब्ध थे l उड़ान भरते ही टॉयलेट की ओर यात्रियों की लम्बी कतार लगने लगी थी जिससे एयर होस्टेस को भोजन परोसने में भी कठिनाई हो रही थी l जहाज के अंदर के वातावरण को हल्का करने के लिए पायलट ने बाहर के तापमान और जमीन से जहाज़ की ऊंचाईं की सूचना लगातार यात्रियों तक पहुंचानी आरम्भ कर दी l यह बात अलग है कि मुझे उड़ान क़े समय पायलट द्वारा बाहर क़े तापमान और जहाज़ की ऊंचाई सम्बंधित जानकारी सदैव बड़ी निरर्थक लगती है l कौन यात्री ऐसा होगा जो उड़ान क़े मध्य में जहाज़ का द्वार खोल कर बाहर जाने की सोचेगा l

गौहाटी पहुँचने से पहले पायलट ने अपनी मेज़बानी निभाते हुए बड़ी गर्मजोशी के साथ कॉकपिट से उद्घोषणा की, "देवियों और सज्जनो, आप पश्चिम में कंचनजंगा की खूबसूरत पहाड़ियों क़े दर्शन कर सकते है l "

हालांकि जहाज़ क़े अंदर बैठे हुए किसी भी यात्री क़े लिए खिड़कियों क़े रास्ते बाहर झाँकने क़े लिए केवल दो ही दिशाएँ थी, फिर भी, क्यूंकि पायलट ने पश्चिम में देख़ने का आग्रह किया था तो में अपनी भूगौलिक अक्षमता क़े कारण थोड़ा चकरा गया l मैंने स्कूल क़े पाठ का स्मरण किया कि यदि में ‘उत्तर’ दिशा की तरफ मुँह किये हूँ तो पश्चिम मेरे बाए हाथ पर पड़ेगा l किन्तु, पहले ‘उत्तर’ को ढूंढ निकालने की तो चिरंतन समस्या वैसे कि वैसे ही बनी हुयी थी l भला हो पायलट का कि मेरे जैसे अन्य यात्रियों का ख्याल रखते हुए थोड़े विराम कि बाद ही उसने उद्घोषणा की , " कंचनजंगा का मनोहर दृश्य आप घडी क़े डायल के आठ बजे के स्थान पर देख सकते है l " उसकी इस जानकारी के कारण मैं कुदरत का वह नज़ारा देख पाया l डूबते सूरज की रौशनी में वह एक दिव्य दृश्य समान था l

यह तो हम सब जानते है कि एक महाद्वीप से दुसरे महाद्वीप की लम्बी हवाई यात्रा करने कि बाद शरीर और दिमाग को गंतव्य स्थान के समय के साथ तालमेल बैठाने में समय लगता है जिसे ‘जेटलैग’ भी कहते है l किन्तु मुझे नहीं मालूम था कि गौहाटी की दो घंटे की उड़ान में भी मेरे दिमाग को ताल मेल बैठाना पड़ेगा l एयरपोर्ट से निकलकर जब मैं गाडी से चालीस किलोमीटर दूर स्थित बर्नीहाट जा रहा था तो रास्ते में यकायक मेरी दृष्टि सड़क के किनारे एक भवन पर पड़ी जिसके मुख्य द्वार पर लिखा हुआ था ,''किम्स अस्पताल , हैदराबाद' l यह पढ़ कर मेरा सर घूम गया कि हैदराबाद कैसे गौहाटी में आ गया l मुझे यह भी मालूम है कि एक किम्स अस्पताल त्रिवेंद्रम में भी है तो आखिर हैदराबाद ने किस पैतरेबाजी से त्रिवेंद्रम को पछाड़ कर गौहाटी के अस्पताल में अपनी जगह बना ली l

मैं यह सब अभी सोच ही रहा था कि अचानक मेरी गाडी के बगल से एक पीले रंग की स्कूल बस निकल गयी जिस पर लिखा था , ‘दिल्ली पब्लिक स्कूल, गुवाहाटी' l अब तक मेरे दिमाग का दही होना लाजिमी था जिसका दोष केवल यात्रा की थकान को देना ठीक न होगा l मैंने निश्चय किया कि बहुत हुआ l स्कूल की पुरानी पुस्तकों को झाड़ पोंछ कर भूगोल का नए सिरे से अध्यन करने के अलावा अब कोई चारा नहीं l

.    .    .

Discus