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"उतना ही ले थाली में,

जिससे व्यर्थ ना जाए नाली में l"

आईआईएम इंदौर के छात्रों की मेस में कॉफी की चुस्की लेते हुए मेरी दृष्टि दीवार पर टंगे इस संदेश पर पढ़ते ही मेरे चेहरे पर यकायक एक मुस्कान आ गई l शब्दों का चुनाव अच्छा था और संदेश शिक्षाप्रद l मुझे सोचने पर मजबूर होना पड़ा कि यह संदेश वातावरण के प्रति समर्पित छात्रों ने लगाया था या मेस के ठेकेदार ने क्योंकि उसका लाभांश भी तो भोजन की बर्बादी से जुड़ा था l

हालांकि यह समस्या विश्व के हर छात्र संस्थान की है फिर भी इस भोजन की बर्बादी के कई लाभार्थी भी है - कुत्ते और बिल्ली जिन्हें एकोलॉजी या पारिस्थितिकी में कैंप फॉलोवर या मनुष्य के पड़ाव अनुयाई भी कहा जाता है l आदिकाल से कुत्ते और बिल्ली वनों में विचरते मानव के अस्थाई पड़ावो के आसपास भोजन के टोह में रहते थे l आजकल भी कुत्ते और बिल्ली छात्र संस्थानों के मेस के बचे खुचे भोजन पर ही निर्भर करते हैं l

हालांकि बहुत से छात्र कुत्तों से बहुत प्यार करते हैं और उनके लिए नियमित रूप से मेस से भोजन लेकर जाते हैं किंतु फिर भी कुत्तों का जीवन इतना आसान नहीं होता है l हर संस्थान में कुछ छात्र कुत्तों के घोर विरोधी भी होते हैं l

आईआईएफएम, भोपाल, में जब मुझे हॉस्टल वार्डन का अतिरिक्त भार दिया गया तो कुत्ता विरोधी दल के कई छात्रों ने मुझे ईमेल भेजकर निवेदन किया कि कुत्तों को संस्थान परिसर से बाहर निकाला जाए l अपने निवेदन के साथ उन्होंने कई तस्वीरें भी भेजी जिसमें कुत्ते खाली कैंटीन की डाइनिंग टेबल पर चढ़कर खाने वाली प्लेटों को चाटते हुए दिखाई देते थे l उनकी शिकायत यह भी थी कि रात के समय इन कुत्तों के रोने और भौंकने की आवाज से उनकी पढ़ाई में भी व्यवधान पड़ता था l

जवाबी हमले में कुत्ते प्रेमियों ने भी मुझे कई ईमेल भेजकर इस निवेदन का भरपूर विरोध किया और उनके निवेदन की भर्त्सना की l उनके अनुसार कुत्ते विरोधी छात्र व्यर्थ में ही कुत्तों को लात मारकर और पत्थर फेंककर चोट पहुंचाते थे l कुत्ते प्रेमियों ने भी कई तस्वीरें मुझे भेजी जिसमें कुछ कुत्तों के खून बहते हुए मार्मिक दृश्य थे l कुत्ते प्रेमियों का एक और अकाट्या तर्क था l उनके अनुसार उनके लिए यह आश्चर्य का विषय था कि कुत्ते विरोधी छात्र कुत्तों के भौंकने से पढ़ाई नहीं कर पाते थे किंतु रात में शराब से धुत्त छात्रों के शोरगुल से उन्हें कोई परेशानी नहीं होती थी l अब तक मुझे यह आभास हो चला था कि संस्थान की कुत्ता नीति बनाने का काम थोड़ा टेढ़ी खीर साबित होगा l

कुत्ते प्रेमियों में एक छात्र था अभिषेक जो पहलवानी भी करता था जिसके फलस्वरूप उसकी देह की मांस पेशियाँ सुदृण थी और फैशन के नाम पर उसने अपने शरीर पर कई टैटूज भी बनवाए हुए थे l वह अक्सर कुत्तों के लिए बिस्किट आदि खरीद कर उनको खिलाता था और कुत्ते भी उस को चारों ओर से घेर कर पूँछ हिलाते हुए बड़ी खुशी से उसके हाथ से भोजन खाते थे l सुभाष नाम का कुत्ता जिसे सब लोग प्यार से सुब्बू कहा करते थे उसका प्रिय कुत्ता था l

एक दिन मैं संस्थान में छात्रों को पढ़ा रहा था l अपनी आदत अनुसार अटेंडेंस लेने के बाद मैं क्लास रूम का दरवाजा बंद कर देता था जिससे देर से आने वाले छात्र क्लास में प्रवेश न करें और किसी भी तरह का व्यवधान ना डालें l छात्र भी इस रूटीन से परिचित थे और देर से आने वाले छात्र बंद दरवाजा देखकर स्वयं ही लौट जाते थे l किंतु उस दिन क्लास के दौरान दरवाजे पर जोर से दस्तक हुई तो मुझे आश्चर्य हुआ मगर फिर भी मैंने उसकी अवहेलना की l थोड़ी देर में फिर से और जोर से दस्तक होने पर मुझे क्रोध आ गया और मैंने एक छात्र को दरवाजा खोलने को बोला जिससे पता लगे कि कौन उद्दंड छात्र यह दुस्साहस कर रहा था l

दरवाजा खुलते ही सुब्बु ने पूँछ हिलाते हुए क्लास में प्रवेश किया l सभी छात्र सुब्बु की इस हिमाकत को देखकर हंस पड़े l सुब्बू ने चारों तरफ देख कर इत्मिनान से छात्रों पर एक नजर डाली और इसके तुरंत बाद वह फिर क्लास से बाहर निकल गया l जब मैं ने छात्रों से इस अजीबोगरीब व्यवहार का कारण पूछा तो पता लगा कि सुब्बु अभिषेक को ढूंढ रहा था l क्योंकि उस दिन अभिषेक क्लास से गायब था इसलिए वह क्लास में एक नजर डाल कर तुरंत चला गया l उसकी आंखें अभिषेक को उसी तरह ढूंढ रही थी जैसे शायद मजनू की आंखें लैला को ढूंढती होंगी l

अभिषेक ने अपनी ईमेल में मुझसे कुत्तों के प्रति कुछ छात्रों के निर्मम व्यवहार का उल्लेख किया था l मैंने उसी संदर्भ में सभी छात्रों को ईमेल से यह बात अवगत कराते हुए लिखा, "मैं अभिषेक के दृष्टिकोण से सहमत हूं l सभी छात्रों को मानवीय व्यवहार का पालन करना चाहिए क्योंकि पशु भी आपके प्यार के बदले में प्यार देता है l " मैंने सुब्बु के क्लास में आने की घटना का जिक्र भी किया और अंत में माहौल को हल्का बनाते हुए मजाक में लिखा कि यदि कोई छात्र कुत्तों को प्रताड़ित करता है तो वे परिसर में आशिकी फिल्म 2 का अरिजीत सिंह का यह गाना गाते हुए फिरेंगे

'सुन रहा है ना तू

रो रहा हूं मैं’ l

कुत्तों के प्रति छात्रों का प्रेम कभी-कभी हास्यपद स्थिति उत्पन्न कर देता था l आई आई एफ एम परिसर में पिंका नाम का एक कुत्ता बहुत से छात्रों का प्रिय था l एक छात्र ने तो पिंका की फेसबुक प्रोफाइल तक बना डाली थी जिसमें पचास छात्र पिंका के दोस्त बनकर फेसबुक पर जुड़ चुके थे l पाठक आज भी फेसबुक पर पिंका iifm टाइप करेंगे तो पिंका की और उसके पचास दोस्तों की तस्वीरें दिखाई पड़ेंगी l

कुत्तों के लिए करीब करीब सब ठीक ही चल रहा था कि एक दिन एक कुत्ते को न जाने क्या सूझी कि उसने प्रातः भ्रमण पर निकले संस्थान निदेशक को ही दौड़ा दिया l जाहिर सी बात है कि निदेशक महोदय को यह बात बिल्कुल नागवार गुजरी कि उस परिसर में जहां उनका प्रभुत्व होना चाहिए था एक अदद कुत्ते ने उनकी हस्ती को चुनौती दे डाली थी l मुझे निदेशक महोदय से यह निर्देश प्राप्त हुआ की कुत्तों की बाबत कुछ करना चाहिए l

हमने बीच का रास्ता निकाला और परिसर के सुरक्षा कर्मचारियों ने धीरे-धीरे और चुपके-चुपके कुत्तों को ठिकाने लगाना आरंभ किया l भोपाल नगर निगम की गाड़ी कचरा लेने रोज परिसर में आती थी l कचरा ले जाते समय सुरक्षा कर्मचारी उसी गाड़ी में एक कुत्ते को रोज़ डाल दिया करते थे और वह परिसर से विदा हो जाता था l यह बात जब छात्रों को पता लगी तो वे परिसर के मुख्य द्वार से कचरा गाड़ी निकलने से पहले कैदी कुत्ते को रिहा करने लगे l किसी भी सामाजिक नीति में जो परेशानियां आती हैं वह इस अभियान में भी आने लगी और यह कहना भी मुश्किल था कि कौन सही था और कौन गलत l

अभी मैं समस्या पर विचार ही कर रहा था कि कुत्तों पर एक प्राकृतिक त्रासदी आ गिरी l एक दिन शाम के समय परिसर में स्थित अपने घर की छत से मैंने पीछे की झाड़ियों की तरफ एक क्षण के लिए एक तेंदुए को देखा l बाद में इसी तेंदुए को एक और फैकल्टी, डॉ योगेश दुबे , ने भी कार पार्किंग के पास रात में काफी देर तक कार की हेडलाइट में देखा l यह तेंदुआ उसके बाद काफी दिनों तक आईआई एफ एम में रहा l

अब इस तेंदुए ने परिसर के कुत्तों को अपना भोजन बनाना शुरू कर दिया l कभी-कभी हम लोगों को सड़क पर खून के धब्बे और घसीटने के निशान भी नजर आने लगे और कुत्तों की संख्या में कमी आने लगी l

जब तक तेंदुआ आईआई एफएम के कुत्तों का शिकार करता रहा, मजे में रहा l रात में कभी कभी कुत्तों का भी सामूहिक भयभीत क्रंदन सुनाई पड़ता था जिससे आभास होता था कि तेंदुआ शिकार की खोज में निकला है l

एक दिन इस तेंदुए ने थोड़ी हिम्मत और दिखाई और आईआई एफ एम के सामने वाली झुग्गी झोपड़ी में घुस गया l इससे वहाँ के लोगों में हड़कंप मच गया l उस समय मेरे बैचमेट, एस एस राजपूत, भोपाल में सीसी एफ के पद पर तैनात थे और भोपाल के पास आष्टा में एक दूसरे तेंदुए से जुड़ी समस्या से जूझ रहे थे l आष्टा के तेंदुए ने किसी आदमी पर हमला कर दिया था और वन विभाग उस व्यक्ति का उपचार करा रहा था l साधारण प्रयोग में लाए जाने वाले एंटीबायोटिक्स उसकी चोटों और संक्रमण पर काम नहीं कर रहे थे क्योंकि मांसाहारी पशुओं के नाखूनों और दातों में पाए जाने वाले कीटाणु कुछ अलग होते हैं और उनके लिए एंटीबायोटिक काफी महंगे होते हैं l

बहरहाल तेंदुए के झुग्गी झोपड़ी भ्रमण के बाद यह निश्चय किया गया कि अब उसे पिंजरा लगाकर पकड़ा जाए l बहुत ही सोच समझकर एक जगह पर पिंजरा लगाया गया और उसके अंदर एक भेड़ को बांधा गया l पहली रात तो कोई हरकत नहीं हुई किंतु दूसरी रात भेड़ पिंजरे के अंदर जख्मी और मृतप्राय स्थिति में पाई गई l किंतु तेंदुए का कोई पता नहीं था l पहले तो यह अनुमान लगाया गया कि तेंदुआ बड़ा शातिर है और पिंजरे में घुसे बगैर ही उसने भेड़ को खाने की चेष्टा की होगी l भेड़ के पोस्टमार्टम के बाद पता लगा कि भेड़ की मृत्यु जंगली पशु के हमले से नहीं बल्कि कुल्हाड़ी से काटने पर हुई थी l अधिक जानकारी मिलने पर यह बात सामने आयी कि झुग्गी झोपड़ी से किसी ने मांस के लिए भेड़ को कुल्हाड़ी से काटने की कोशिश की थी और किसी कारणवश कृत्य को बीच में छोड़कर उसे भागना पड़ा था l मानव और जंगली पशुओं के टकराव के नए आयाम हम लोगों को देखने को मिल रहे थे l

भेड़ के व्यर्थ के बलिदान के बाद वन विभाग ने अब दूसरा जुगाड़ लगाया l पिंजरे के पास एक पेड़ के ऊपर एक रिकॉर्ड प्लेयर और स्पीकर लगाया गया जिससे रात भर हर पांच मिनट में आधे मिनट के लिए मेमने की आवाज गूंजती रही l ऐसा अनुमान था कि यदि तेंदुआ ऊंचा भी सुनता होगा तो निश्चित ही उस तरफ दौड़ा आएगा l आशा अनुरूप कृत्रिम मेमने की आवाज सुनकर पहली रात में ही तेंदुआ पिंजरे में आकर फंस गया l उसे तुरंत शहर से दूर सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में छोड़ दिया गया l मुझे लगता है तेंदुआ अपने मन में जरूर यह सोचता हुआ गया होगा - बड़े बेआबरू होकर तेरे कूचे से निकले हम l

इस प्रकरण के साथ कुछ और मजेदार भी बातें जुड़ी थी l सरकार में ऐसी व्यवस्था है कि यदि दुर्लभ जंगली पशु किसी की खेती या जान माल को नुकसान पहुंचाता है तो सरकार द्वारा उसकी भरपाई की जाती है l झुग्गी झोपड़ी से वन विभाग को कई आवेदन प्राप्त हुए जिसमें भरपाई का निवेदन किया गया था l एक निवेदन अनुसार उस तेंदुए ने किसी की आठ बकरियां खा ली थी l जब वन अधिकारी वहां मुआयना करने पहुंचे तो हड्डियों या खून के धब्बे कहीं दिखाई नहीं पड़े l इस पर आवेदक ने बड़ी बेबाकी से बताया कि तेंदुए ने उसके सामने ही हड्डियां और खून तक चट कर डाले थे l दूसरे आवेदक ने डेढ़ लाख रुपए का जुर्माना मांगा था l उसके दावे के अनुसार उसकी बेटी की शादी झुग्गी झोपड़ी में संपन्न होनी थी l उसके परिवार को तेंदुए के आतंक के कारण विवाह कार्यक्रम मैरिज गार्डन में करना पड़ा जिससे उसके परिवार को भारी नुकसान हुआ l इन सभी दावों को अंततः खारिज कर दिया गया था l

इस दौरान आईआई एफ एम में एक और घटना घटित हुई l आई आई एफ एम कैंपस में बहुत से मोर भी पाए जाते हैं और बारिशों में पंख फैलाए मोरों को नाचते हुए देखना भी एक मनोहर दृश्य होता है l परिसर के कुत्ते जो अब तक छात्रों के मेस का भोजन करके तगड़े हो रहे थे, उन्होंने एक मोर का शिकार कर डाला l कभी कभार कुत्ते गिलहरियों को भी अपना शिकार बना रहे थे l अब तख्ता पलट चुका था और लड़ाई सिर्फ कुत्तों और कुत्ते विरोधी छात्रों के बीच की नहीं थी l कुछ और पशु प्रेमी छात्रों को भी यह लगने लगा कि इस समस्या का निदान होना चाहिए l

छात्रों के साथ चर्चा पर एक और अच्छा तर्क उभर कर आया l यह तो सबको मालूम था कि कुत्ते अपनी क्षेत्र की सजगता से रक्षा करते हैं और किसी भी बाहरी कुत्ते के आने पर उसे तुरंत खदेड़ देते हैं l यदि परिसर के कुत्तों को संस्थान प्रबंधन किसी तरह बाहर करता भी तो आसपास के दूसरे कुत्ते उनका स्थान ले लेते और समस्या ज्यों की त्यों बनी रहती l इसके विपरीत कुत्तों की जनसंख्या पर काबू किया जाना सबको मान्य था l

इस निर्णय के बाद एम फिल की एक छात्रा के सहयोग से मैंने अहमदाबाद के एक गैर सरकारी संस्थान से संपर्क किया जिन्होंने बहुत ही पेशेवर ढंग से परिसर के कुत्तों की नसबंदी कर दी l इस अभियान में छात्रों ने बहुत सहायता की क्योंकि उनके बगैर कुत्ते हमारी पकड़ में आने वाले नहीं थे l इस अभियान में सिर्फ नवजात बच्चों और दूध पिलाती माओं की नसबंदी नहीं की गयी थी क्योंकि विशेषज्ञ राय के अनुसार ऐसा करना उनके जीवन के साथ खिलवाड़ होता l मुझे लगा कि नसबंदी से बचने के बाद यदि कुत्तों के छोटे बच्चे और उनकी माएँ बोल पाते तो हम लोगों से मुँह चिढ़ा कर अवश्य कहते, "हर कुत्ते का दिन होता है जनाब " l

परिशिष्ट भाग...

अभिषेक के कैंपस छोड़ने के बाद सुब्बु को एक फैकल्टी, डॉक्टर के के झा, भारतीय वन सेवा अधिकारी, ने गोद ले लिया l अपने रिटायरमेंट के बाद डॉक्टर के के झा सुब्बू को इनोवा गाड़ी में बिठा कर गाजियाबाद ले गए जहां वह आज भी उनके साथ मजे में रह रहा है l

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