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श्रीरंगापट्नम के छोटे से कस्बे के मंदिर के हाथी का नाम था शिवा I विशाल देह किन्तु स्थिर और अमूमन प्रसन्नचित्त स्वभाव था उसका जिसके कारण मंदिर में पधारने वाले भक्तगण देवता की पूजा करने से पहले शिवा के आगे अपने शीश नवाते हुए जाते थे I पूजा के पश्चात पुजारी भक्तों के माथे पर चन्दन का टीका लगाता और उनके चढ़ाये हुए केले के पत्ते में लिपटे प्रसाद को उन्हें वापस कर देता जो वे बड़ी श्रद्धा से दोनों हाथों में ग्रहण करके बाहर निकलते I

मंदिर से निकलने के बाद वे एक बार फिर शिवा को प्रणाम करते और प्रसाद का गुड़ और केला उसे खिलाते I शिवा अपनी काली सूंड उठा देता और भक्त लोग प्रसाद उसके गुफानुमा गुलाबी मुंह में बड़ी नाज़ुकता से रख देते I छोटे बच्चों के लिए यह सदा उन्हें पुलकित करने वाला दृश्य होता जब प्रसाद खाने के बाद शिवा अपनी सूंड से भक्तों के सर और झुकी हुई पीठ स्पर्श करके उन्हें अपना आशीर्वाद देता I आशीर्वाद देते समय उसकी दोनों छोटी आँखे बड़ी भली लगती और दोनों कान लगातार पंखे की तरह हिलते रहते I

मंदिर में विशिष्ट अतिथियों के आगमन पर शिवा उनके गले में फूलमाला डाल कर उनका स्वागत करता I स्थिति यह थी कि कस्बे के लोग किसी अतिथि को विशिष्ट तब ही मानते थे जब गले में माला डालने के लिए उन्हें शिवा के सामने लाया जाता था I

मंदिर के बड़े से प्रांगढ़ में ही बिना दीवारों के एक खुला शेड था जिसके छह खम्बों पर टिकी खपरैल से ढकी दोतरफा ढलानदार छत के नीचे ही शिवा का निवास स्थान था I चालीस साल का महावत, मुरली, उसकी देखभाल के लिए मंदिर द्वारा नियुक्त किया गया था हालांकि मुरली अपना काम पूरी निष्ठां से नहीं करता था I मुरली को शराब की लत थी और नशा करने के बाद वह कई बार शिवा को समय पर भोजन और स्नान कराना भूल जाता था I किन्तु शिवा ने कभी इस बात पर अपनी खिन्नता प्रकट नहीं की थी I ऐसा लगता था जैसे मंदिर के कुलदेवता की उदारता उसमें भी समां गयी थी और उसके लिए मुरली की उपेक्षा भी क्षम्य थी I

श्रीरंगापट्नम के एक पशु डॉक्टर भी दो सप्ताह में एक बार शिवा के निरीक्षण के लिए आते थे I वे बड़े कायदे से जांच पड़ताल करते और आवश्यकता अनुसार आहार, दवाई, और मरहम आदि सम्बंधित निर्देश मुरली को दे जाया करते I वैसे वे मुरली के काम से खुश नहीं थे और इस बारे में उन्होंने मंदिर के अधिकारियों से शिकायत भी की थी परन्तु विकल्प के अभाव में उनकी शिकायत पर कोई कार्यवाही नहीं हो पायी थी i दरअसल बदलते समय के साथ लोग महावत बनना पसंद नहीं करते थे I इस काम में जोखिम तो था ही और पगार उसके मुकाबले बहुत कम I हाथी की देखभाल करना आसान काम तो हरगिज़ नहीं था और शिवा तो देव सामान भी था I

उस दिन डॉक्टर स्वामी को शिवा के शेड में घुसते ही एक अजीब सी गंध का आभास हुआ... डॉक्टर के चहरे पर हल्की सी चिंता की लकीर खिंच गयी जब उन्होंने पाया की वह गंध शिवा के मूत्र से आ रही थी जो उसके पिछले पैर से लग कर फर्श पर गिर रहा था i शिवा की कनपटी पर थोड़ी सी सूजन भी लग रही थी I उन्हें मुरली पर झुंझलाहट भी हुई कि उसने क्यों इन बातों पर ध्यान नहीं दिया था और आते ही उन्हें इस बात कि सूचना क्यों नहीं दी थी I

अपने आक्रोश को छिपाते हुए डॉक्टर ने मुरली की बांह पकड़ कर उसे समझाया, "ऐसा लगता है कि शिवा मस्त अवस्था में जाने वाला है I तुम्हे तो मालूम है कि उस अवस्था में हाथी बहुत विचलित रहते है और आक्रामक हो जाते है I मेरे हिसाब से एक सप्ताह के अंदर ही शिवा की भी वही स्थिति हो जाएगी इसलिए अब तुम इसे खुला न छोड़ना I इसी शेड में इसके पैरों में जंजीर डाल दो और किसी भी भक्त को इसके पास न आने देना जब तक मस्त वाला समय न बीत जाए I में एक सप्ताह बाद फिर आ के देख जाऊँगा I” मुरली ने सिर हिला कर उनकी बात का अनुमोदन किया I

डॉक्टर स्वामी का पूर्वानुमान बिलकुल सही निकला और उनके बताएं हुए लक्षण तीन दिन के अंदर ही प्रत्यक्ष दिखने लगे I शिवा की कनपटियों से स्राव होने लगा जो मस्त अवस्था की पक्की पहचान है I मुरली ने तत्काल डॉक्टर द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन किया और शिवा के पैरों में जंजीर बाँध दी I बंधन के बावजूद शिवा हिलने डुलने का प्रयत्न करता और अपने असफल प्रयास से और चिड़चिड़ा जाता I शिवा के शेड के बाहर एक नोटिस भी चस्पा कर दिया गया जिसमें बड़े बड़े शब्दों में लिखा था कि लोग उससे दूर रहें I किसे पता था कि इतनी सावधानी के बाद भी अनहोनी तो घट के रहेगी I

उस दिन मंदिर के सभी कर्मियों को वेतन मिला था I हमेशा की कि तरह जैसे ही मुरली की ज़ेब गरम हुई तो उसने देसी शराब के ठेके की राह पकड़ ली I दोपहर होते होते नशे में धुत्त लड़खड़ाते हुए मंदिर के प्रांगढ़ में अभी वह घुसा ही था कि उसे शिवा की चिंघाड़ने की आवाज़ सुनाई पड़ी I अपनी ही लगायी गयी चेतावनी को भूल कर वह झूमता हुआ हैरान परेशान शिवा के सामने खड़ा हो गया I स्वयं अपनी सुध बुध मुरली को नहीं थी और वह शिवा को शांत रहने के लिए कह रहा था I किन्तु उसके प्रवचन का शिवा पर कोई असर नहीं हुआ बल्कि वह और जोर जोर से अपनी जंजीरों को खींचते हुए चिंघाड़ने लगा I

मुरली को शिवा का यह व्यवहार कतई गवारा नहीं हुआ और गुस्से में उसकी भृकुटि तन गयी I उसने अपनी लुंगी घुटने तक मोड़ कर अपनी बनियान उतार कर ज़मीन पर फ़ेंक दी और शिवा को ललकारते हुए कहा , " मंदिर में रहते रहते तू अपने को भगवान् समझने लगा है क्या? यह मत भूल कि में तेरा महावत हूँ I”

मंदिर प्रांगण में उस समय उपस्थित भक्तों को यह नोकझोंक बड़ी अजीबोगरीब लग रही थी I एक तरफ तो ढाई पसली का मुरली था जो नशे में धुत अनर्गल प्रलाप कर रहा था और दूसरी तरफ उसके सामने जंजीरों में जकड़ा हुआ था चार टन का जीव जो प्राकृतिक कारण से वैसे ही मन से बहुत व्यथित था I गालियों की बौछार के साथ जब मुरली के दोनों हाथ इंकलाबी अंदाज में हवा में लहराए तो शिवा एकदम से उत्तेजित हो गया I उसने एक झटके से अपनी जंजीरों को तोड़ डाला और अपने शेड से द्रुत गति से बाहर मुरली की तरफ लपका I उसके भारी कदमों के नीचे धरती भी कंपन करने लगी I

इससे पहले की लोग कुछ समझ पाते शिवा ने मुरली को अपने पैर से जोर की ठोकर मारी जिसे लगते ही मुरली हवा में एक गुड्डे की तरह उड़ते हुए करीब बीस फीट दूर जा गिरा I उस ठोकर के पीछे संभवतः शिवा की ताकत के अलावा मुरली के अपने पुराने कर्मों का बल भी था I

शिवा दौड़कर फिर मुरली के पास पहुंचा और उसने अपने पांव से मुरली के सर को कुचल दिया I जमीन पर गिरने के बाद यदि उस निढाल शरीर में कोई जान बची भी थी तो यह साफ था कि अब उसकी कोई गुंजाइश नहीं थी I इसके बावजूद भी शिवा ने कई बार अपने पैरों से मृत देह को रौंदा I ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे वह भगवान शिव का तांडव कर रहा था I

मुरली की लाश पर खड़े होकर शिवा ने अपनी सूंड उठाकर कई बार हुंकार भरी जिसे सुनने से पहले ही आसपास के लोग उस भयावह दृश्य को देखते ही तितर बितर होकर भाग चुके थे I उनके मस्तिष्क में एक ही विचार उठ रहा था कि किस बुरी आत्मा से वशीभूत होकर

शिवा ने ऐसा जघन्य कृत्य किया था I किंतु जैसा कि सुलझे और सयाने लोग कहते हैं – ‘अच्छाई और बुराई दोनों एक साथ एक ही जीव में रहती है I किसी क्षण के आवेग में उनमें से कौन सी प्रवृत्ति बाहर आएगी यह उस जीव के बुद्धि विवेक पर निर्भर करता है I’

अपना क्रोध मुरली के शरीर पर उतारने के बाद शिवा मंदिर परिसर के मुख्य द्वार से दौड़ता हुआ बाहर निकल कर कस्बे की तरफ चला गया I कुछ देर की शांन्ति के बाद लोग धीरे-धीरे वापस लौटे और इस प्रकरण की खबर पूरे श्रीरंगापटनम में आग की तरह फैल गई I पुलिस मुरली की लाश को पोस्टमार्टम के लिए उठा कर ले गयी और शिवा को ढूंढने के प्रयास में लग गयी I

क्योंकि आम जनता की सुरक्षा का प्रश्न था इसलिए पुलिस कर्मियों ने शिवा को तुरंत जान से मारने की रणनीति बनानी आरम्भ कर दी I इसी बीच मंदिर के एक कर्मचारी ने डॉक्टर स्वामी को इस बात की सूचना दे दी और उनसे प्रार्थना करी कि उनके हस्तक्षेप से यदि शिवा बच सके तो वह अपनी पूरी कोशिश अवश्य करें I

डॉक्टर स्वामी को इस तरह की स्थिति से निपटने का कोई तजुर्बा तो पहले नहीं था किंतु शिवा से अपने लगाव के कारण उन्होंने आनन् फानन में एक बड़ा निर्णय ले लिया I अपनी अलमारी से उन्होंने जंगली जानवरों को दूर से बेहोश करने वाली एक बंदूक और दवाई निकाली I उनका इरादा था कि शिवा को दूर से इस विशेष बंदूक की सहायता से यदि बेहोशी का इंजेक्शन लगा दिया जाए तो उसे काबू करना आसान होगा और उसके जीवन की रक्षा हो सकेगी I अपने इस निर्णय से वह बहुत आश्वस्त तो नहीं थे क्योंकि अपने अब तक के पेशे में उन्होंने सर्जरी से पहले गाय, भैंस, बकरी, कुत्ते, बिल्ली और अन्य छोटे पशुओं को ही बेहोशी का इंजेक्शन लगाया था और वह भी तब जब उन पशुओं को उनके क्लीनिक में उनके सहायक ने पकड़ कर रखा था I मुरली का हश्र जान कर डॉक्टर स्वामी अपने निर्णय से भयभीत भी थे l

उधर पुलिस की गश्ती टुकड़ी भी बंदूकों और असले से लैस तैयार खड़ी थी I पुलिस वाले डॉक्टर स्वामी को अपने साथ ले जाने के लिए तैयार हो गए किंतु उन्होंने यह साफ बता दिया कि यदि डॉक्टर अपने प्रयास में असफल होते हैं तो बिना किसी हिचकिचाहट और विलंब के शिवा को पुलिस की गोलियों का शिकार होना पड़ेगा I डॉक्टर स्वामी के पास कहने को अधिक कुछ नहीं था I उनकी चिंता का विषय तो यह था कि यदि वह शिवा को दवाई से वश में कर भी ले तो उसके बाद उसका करेंगे क्या क्योंकि दवा का असर तो कुछ समय तक ही रहने वाला था I

श्रीरंगापटनम के लोगों की सहायता से शिवा को खोज लिया गया I वह दो धान के खेतों के बीच नारियल पेड़ों के एक झुरमुट में खड़ा था I पुलिसकर्मी अपनी गाड़ियों से उतर कर धीरे-धीरे चुप्पी साधे उस तरफ बढ़ने लगे और उन सब के आगे चल रहे थे डॉक्टर स्वामी I कुछ दूर चलने के बाद आगे चलने वाले सिपाहियों ने पीछे वालों को रुकने का इशारा किया I जहां वह छिपे हुए खड़े थे वहां से पेड़ों की ओट के पीछे शिवा की सूंड दिख रही थी और वह घास उखाड़ कर खा रहा था I बीच-बीच में वह जमीन से मिट्टी भी निकाल कर अपने ऊपर फेंक रहा था - बिल्कुल वैसे ही जैसे कोई शरारती बच्चा घर से भाग कर अपने शरीर और कपड़ों की फिक्र किए बगैर लोटपोट होकर पूरी मस्ती करता है I

शिवा की स्थिति का भान होते ही पुलिस वालों ने अपनी बंदूकों के सेफ्टी लॉक खोल दिए और अपने अधिकारी के आदेश का इंतजार करने लगे I डॉक्टर स्वामी ने भी अपनी बंदूक संभाली और उसमें सिहरते हाथों से दवाई का डार्ट लगाया I उनको शिवा की सूंड तो हवा में लहराती दिख रही थी किंतु इंजेक्शन दागने के लिए उन्हें उसके कंधे, पेट, या पुट्ठों पर निशाना लगाना था I एक बार फिर उन्होंने अपने मन में उठ रहे नकारात्मक विचार को झटका दिया जो रह-रह कर उनके अंदर उठ रहा था कि यदि उनका प्रयास असफल रहा तो उसका क्या दुष्परिणाम हो सकता था I

टुकड़ी के सब लोग सांस रोके उत्कंठा में खड़े थे I पंद्रह मिनट तक कोई हलचल नहीं हुई I यह मुकाबला था जहां बुद्धि और धीरज दोनों की आवश्यकता थी I इसी बीच उस मरघटी सन्नाटे को भंग करती हुई डॉक्टर स्वामी की स्मार्ट घड़ी से एक नोटिफिकेशन की अप्रत्याशित आवाज आई और वह बिल्कुल सहम गए I जब उन्होंने घड़ी के डायल पर दृष्टि डाली तो उस पर लिखा हुआ संदेश पढ़ा जो कह रहा था -‘कुछ तो गड़बड़ है ! आप पिछले पंद्रह मिनट से एक ही स्थान पर खड़े हैं किंतु आपकी नब्ज़ की गति 130 चल रही है’ I डॉक्टर स्वामी ने माथे पर आए पसीने को पोंछा I उन्होंने प्रार्थना करी कि जैसे घड़ी का आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस विशेष स्थिति के कारण चकरा गया था ठीक वैसे ही शिवा को चकमा देकर उसे काबू करने की शक्ति ईश्वर उन्हें दे I पसीने से लथपथ अपने हाथों से उन्होंने अपनी विशेष बंदूक को एक बार फिर जोर से पकड़ा क्यूंकि धैर्य से प्रतीक्षा करने के अलावा कोई और चारा नहीं था I

डॉक्टर स्वामी की प्रार्थना शीघ्र ही रंग लायी I शिवा अपनी पीठ को एक पेड़ के तने से रगड़ने के लिए जैसे ही थोड़ा आगे बढ़ा तो डॉक्टर स्वामी को वह अवसर मिल गया जिसकी उन्हें तलाश थी I उन्होंने एक गहरी सांस ली और निशाना लगाकर डार्ट दाग दिया जो हवा में उड़ते हुए सीधे शिवा की पीठ पर जाकर धस गया I क्योंकि डार्ट शिवा से टकराकर जमीन पर नहीं गिरा था इससे यह अंदाजा हो गया था कि तरकीब काम कर गई थी और इंजेक्शन से दवा उसके शरीर में पहुंच चुकी थी I हालांकि दवा के असर के लिए 15-20 मिनट का समय अभी भी लगना बाकी था I

डॉक्टर स्वामी पुलिस को पहले ही बता चुके थे कि इंजेक्शन लगते ही शिवा किसी भी दिशा में बदहवास सा दौड़ सकता था , सं”भवतः जिस तरफ उसका मुंह होगा वह उसी तरफ दौड़ेगा I” इसलिए पुलिस से उनका पहले ही अनुरोध था कि शिवा को चारों ओर से ना घेरा जाए बल्कि उसके भाग निकलने के लिए एक रास्ता खुला रहे I यह भी आवश्यक था की दवा के असर होने तक उसके पीछे-पीछे सुरक्षित दूरी बनाए हुए चला जाए I

सब कुछ वैसे ही हुआ जैसा डॉक्टर स्वामी ने समझाया था I थोड़ी ही देर में दवा ने अपना असर किया और शिवा दौड़ते दौड़ते एक स्थान पर रुक कर शिथिल हो गया I जब इस बात की तसल्ली हो गई कि फिलहाल वह अपनी उत्तेजना वाली स्थिति में नहीं है और कुछ अनर्थ करने में सक्षम नहीं है तो बहुत से साहसी युवकों ने आगे बढ़कर उसे धकेलना शुरू कर दिया हालांकि इस स्थिति में हाथी को धकेलने का काम दुसरे पालतू हाथियों से लिया जाता है I उत्साही युवकों की दो घंटे की मेहनत के बाद शिवा को एक क्राल में बंद कर दिया गया जहां उसे मस्त की अवस्था समाप्त होने तक रहना था I शाम का सूरज डूब रहा था पर सब ने चैन की सांस ली कि बगैर और खून खराबे के पूरा घटनाक्रम को एक सुखद विराम मिल गया था I किंतु अभी इस कहानी का एक मार्मिक अध्याय बाकी रह गया था I

शिवा अब एक नए महावत की निगरानी में क्राल में बंदी बना हुआ था I उसे हरी घास, रागी के बड़े-बड़े लड्डू और गुड नियमित रूप से खिलाया जा रहा था I डॉक्टर स्वामी यह निर्देश दे चुके थे कि शिवा को अधिक पौष्टिक आहार न दिया जाए क्योंकि इससे मस्त की अवस्था पर अच्छा असर नहीं पड़ता है I हालांकि स्थानीय लोगों में बहुत जिज्ञासा थी पर उनका क्राल के पास आना अभी भी निषेध था क्योंकि इससे शिवा की उत्तेजना बढ़ सकती थी I

इस घटना के चौथे दिन मुरली की विधवा और उसका 15 साल का बेटा फूल और प्रसाद लिए हाथ जोड़ क्राल पर पहुंचे और शिवा से थोड़ी दूर साष्टांग प्रणाम की मुद्रा में जमीन पर लेट गए I नए महावत को यह व्यवहार बड़ा अजीब लगा और उसने उनकी प्रार्थना के बाद मुरली की विधवा से पूछा, “तुम यहां शिवा की स्तुति के लिए क्यों आई ? तुम्हें उस पर पर क्रोध नहीं आता कि उसने मुरली को मार डाला?”

विधवा ने नए महावत की तरफ अपनी अश्रुपूर्ण आंखों से देखा और कहा, “भगवान के प्रति कैसा क्रोध ? शिवा तो हमारा भगवान है I मैं यह कैसे भूल सकती हूं कि इतने वर्षों मेरा और मेरे परिवार के भरण पोषण की व्यवस्था शिवा के कारण ही थी I मेरे पति को अपनी नियति द्वारा निश्चित मृत्यु मिली है I वह दुर्घटना कष्टदायक और दुखदायी तो है किंतु इसके लिए मैं शिवा को दोषी नहीं मानती I मैं तो सदैव शिवा की ऋणी ही रहूंगी I”

एक दुखियारी, गरीब और अनपढ़ विधवा के दर्शन शास्त्र को समझने की चेष्टा में नया महावत उसे मूक दृष्टि से ताकता रह गया I विधवा अपने बेटे के साथ शिवा के सामने एक बार फिर नतमस्तक होकर धीरे-धीरे पग बढ़ाते हुए वापस लौट गयी I

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