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इन अंधेरी रातों में खुद को खोज रहे हैं हम।

न दिखे उजयाली,खुद को कोष रहे हैं हम।
उड़ना है अंधेरी रातों से, उजयाली के आसमान में।
ना दिखे कोई जरिया, इस नफरतों के जहां में।
पल -पल ठोकर खाकर, फिर से चल रहे हैं हम।
इन अंधेरी रातों में, खुद को खोज रहे हैं हम।
नहीं जानते किस राह पर सवार है।
खुद को लेकर मन में मेरे, लाखों सवाल है।
अकेले से पलों में, बस सोच रहे हैं हम।
क्या सही दिशा की ओर ढ़ल रहे हैं हम।
खैर सोचता तो पूरा जहान है।
करके दिखाना है जो मेरा मुकाम है।
छुना हैं ऊंचाइयों के आसमान को।
देखेगा पूरा जहान अपनी उड़ान को।

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