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एक कोने में सिमट कर रह गई है जिंदगी..
सोचते सोचते आंखों से बह गई है जिंदगी..
जिंदगी को जीने का कोई जरिया नहीं दिखता..
आखों से बहते हुए पानी का लोगों को दरिया नही दिखता..
वे कहते हैं बुरे वचनों को..
उन्हें हमारा इस स्थिति में रहना नही दिखता..
इस अकेले से पल में जी रहे हैं हम..
अब तुम ही बताओ कैसे ज़िंदगी के ज़हर को पी रहे हैं हम..
हाथों की लकीरों पर विश्वास नहीं अब..
इस जीवन के दो क्षणों में कुछ खास नहीं अब..
बीतते हुए पलों में कुछ आश नही अब..
गम और आसू के अलावा कुछ पास नही अब..
देखते है उस ओर जहां घृणा का बाजार है..
लोगों के घृणित वचनों का हम पर पल -पल वार हैं..
उन्हें पीछे छोड़ कर आगे बढ़ चुके हैं हम..
अब तुम ही बताओ कैसे ज़िंदगी के इस पलो को जी रहे हैं हम...

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