क्या ये घर मेरा, एक लड़की का कौन सा घर ,जिसको को वो अपना घर कह सके,पिता बेटी का आज से पहले ऐसा रिश्ता न कभी देखा मैने ।
उस लड़की का कौन सा घर ,जिसका पिता उससे जान छूटाना चाहता हो , व्याह दी जाए एक बार लड़की ,फिर न चढ़ाऊं कभी अपनी देहरी,जब पिता की सोच ऐसे हो तो बनते मकान पर बेटी का हक है क्या।
वो लड़की कैसे पिता के बनते ,मकान पर कैसे अपना अधिकार जता सकती है, मां चाहती है उसकी बेटी उसे अपना घर माने,कैसे लड़की अपने दिल को मनाए क्या ये घर मेरा है?
जिस पिता के मन में अपनी ,लड़की के लिए इतना मैल हो ,तो ऐसे में वो उस बनते मकान को अपना घर कैसे माने।
उस लड़की की गलती इतनी सी की ,उसने अपनी मां को पिता के जूते से पीटना रोक कर अपने पिता खिलाफ खड़ी हुई ,जिसमे एक -दो जूते उस को भी लग गए,पिता को उनकी गलती बताना मां का साथ देना बर्द्दस्त नही हुआ।
ऐसे पिता के घर को अपना कैसे माने ,पिता को मां को मरने से रोका तो ,पिता ने आजीवन नफरत की गांठ बांध ली अपनी लड़की से , क्योंकि वो पति पत्नी के बीच आई ऐसा मानते है वो ।
पिता के ऐसे व्यवहार के कारण,लड़की ने आगे पढ़ने की ठानी ,जो पिता को रास नहीं आया,पिता ने नफरत को गहरा लिया और लड़की की शादी की ठानी।
लड़की जान चुकी थी उसका शादी के बाद क्या हाल होगा ,लड़की के शादी से मना करने पर हुआ ,पिता गुस्से में पागल कर दिया हर जगह अपनी ही लड़की को बदनाम,क्या सच में पिता ऐसे होते है या पुरुष का अहंकार।
अब वो कैसे उसे अपना पिता माने, कैसे उस बनते मकान को अपना माने। उस बनते नए मकान में न उससे कुछ पूछा गया, न बताया गया तो वो घर कैसे मेरा हुआ।
घर अरमानों से बनता हैं जिसे बनाने की ख्वाहिसे होती है ख्वाहिशों से तो घर बनता है, वरना दीवार और छतों को घर कौन कहता है।
कैसे पिता का घर मेरा हुआ,जब उस घर मैं कुछ भी मेरा नहीं, जब पिता के दिल में कड़वाहट मेरे लिए ,जीभ उनकी करेले और नीम से भी कड़वी ,तो क्या ये घर मेरा है. आप को क्या लगता है?