मै अब तक 1 से डेड लाख फुक चुका था.लेकीन ऐसाभी कभि हो सकता है ये मैने कभि सोचा नही होगा| 1 साईडेड लव आंखौसे दिल तक उतरनेवाला इश्क़ है | ये इश्क़ दोस्तोकी group मै बोहोत बार होता है| मै कंजूस मुझे कभि ऐसा इश्क़ विश्क़ ना हो इसलिये मै अकेला रहना पसंद करता था | यानेकी पैसा खर्चा न हो, कहते है ना प्यार अन्धा होता है| वैसे ही एक तर्फा हो तो तकलिफके साथ नासुरभी हो है| आइये जख्म कुरेदते है एक हसीन वाकियेसे|
रस्ते से चलते चलते अचानक रस्तेपे पडा हुवा एक पॉकेट मिला..आप सोचते होंगे अरे किसका पॉकेट किसको मिला? बताता हू ! मेरा नाम जित ..जित दिक्षित, रहता खाना-पिना मुम्बई मे..ये उस दिन की बात है|
हमारे कॉलेजकी दिवालीकी छूटीया चालू होनेवाली थी! कॉलेज का आज लास्ट दिन फ़ीर दिवालीके बाद कॉलेज चालू होंगे| कॉलेजसे बाहर निकल रहा था ! ये किसीके साथभी हो सकता है| रस्तेपे गिरा हुवा पाकिट मिलना | मेरे साथ भी हुवा| मुझे अकेलेपनकी आदत है | कयु की पत्ता नही अकेलेपनसे मै खुश रहता हू, हमारी कहानी रस्तेपर गिरे हुवे पॉकेटसे शुरु हुई | पॉकेटमे एक कॉलेजका आय कार्ड, 3,350 रुपये थे ! मैने सोचा की जो भी लडकीका ये पॉकेट होगा उसे मै दे दुंगा कयु की वौ कितना टेंशनमे होगी, तुरंत पॉकेटके अंदरकके आय कार्डके उपरका मोबाईल नंबर मिलाया, लड्कीका नाम पायल
"हल्लौ,मेरा नाम जित..आपका नाम पायल है? सांमनेसे आवाज आई "हा" आपका पॉकेट कही गिरा था क्या? वौ सामनसे "हा" बोली.. मैने कहा "आपके पैसे सुरक्षित है. आपकौ पॉकेट कैसे लोटाऊ?" उसने कहा "आज श्याम 6 बजे कॉलेजके गेटके पास हम मिल सकते है"
मै कुछ कपडोकी खरिददारीके लिये मार्केट गया था, वहासे आते वक्त लेट हो गया, अचानक हलकी हलकी बारिश शुरु हुवी, आज कल बारिश कब हो उसका कुछ बोल नही सकते | मै भागते दौडते कॉलेज के गेटपे पहुचा, वौ वहा नही थी, मुझे लगा वौ आकर गई हो?, मैने कॉल किया..वौ सामनेकी रेस्टॉरंटके बाहर खडी थी..मै वहा गया | मैने कहा "हल्लौ मै जित, आपका नाम पायल? उसने "हा" करके गर्दन हिलाई | मैने पॉकेट उसके हातमे दिया, उसने खोलकर देखा और रोने लगी..उसके जानमे जान आयी होगी | उसने कहा.की ये पॉकेट नही मिलता तो... मै किसीका ऊधार नही चुका सकती थी| आप जैसे इन्सान अभी कहा मिलते है.बारिश बढ रही थी... मैने कहा "ये रेस्टोरंटमे एक एक कप चाय पी सकते है?" एक नंबरका कंजूसमे चायके पैसे निकालने तयार हो गया | पायलने "हा" कहा... बारिश रुकनेका नामही नही ले रही थी | चाय और बाते ऐसा लगा मैने मन ही मनमे उस्से दोस्ती कर ली...
कभी कभी कोई अचानक अच्छा लगने लगता है,जैसे मुझे पायल अच्छी लगने लगी थी| उसका वौ कुछ देर का साथमे रहना बार बार याद आ रहा था,ऐसा लग रहा था की बस उसके साथ रहू | वौ 12 वी मे तो मैभी12 स्टँडर्डमे मै पढनेमे अच्छा खासा | पर पढाईमे मन ही नही लग रहा| किताब लेके बैठता तो वही लड्कीका चेहरा सामने आता | बार बार लगता वौ मेरा उसी रेस्टोरन्टमे इंतजार करती होगी, मै बोहोत बार उस्सी रास्तेसे आते जाते वहा गया भी... लेकीन रेस्टॉरंटकी मुलाकात को 4 दिन हो भ चुके थे | सोचा उस्से कॉल करु... लेकीन डरता था की उस लड्कीने मुझे व्हाट्स अप्पपे थँक्स लिखा था वौ भी तिन दिन पहले कभी मोबाइल और व्हाट्स अप्प चेक न करनेवाला में उस दिन... उसके व्हाट्स अप्प डिपीको निहारने लगा, अचानक उसका hi आया.उसने कहा... आपकौ कितने दिनसे ऑनलाईन देख रही थी? लेकिन आप आये ही नही, आज दिखाई दिये,कॉल ही करनेवाली थी..फ़ीर सोचा आपकौ अच्छा न लगे| मैने कहा सॉरी मे व्हाट्स अप्प ज्यादा नही देखता.कयु की मेरे ज्यादा दोस्त नही जो है ..वौ है और नही भी है| आप मिली वही कूछ बाते हुवी...वौ ओफलाइन हो गई... फ़ीर मैने उसे कॉल कीया.. उसने नही उठाया...