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रात को 10 बजने वाले थे, मैं ऑफिस की लिफ्ट से बाहर निकला, पार्किंग से गाड़ी निकाली और घर की तरफ चल दिया । मैं इस समय काफी तनाव में था । आमतौर पर मैं साढ़े 8 बजे तक औफिस से घर पहुंच जाता था. घर पर मेरा कोई भी इंतजार नहीं करने वाला था । आज इस समय घर जाने का बिलकुल भी मन नहीं हो रहा था । मैंने कुछ सोच कर आगे से यूटर्न लिया और कार दूसरी सड़क पर डाल दी । थोड़ी देर बाद मैंने एक खुली जगह पर कार खड़ी की और पैदल ही समुद्र की तरफ चल दिया । यह समुद्र का थोड़ा सूना सा किनारा था । किनारा बड़े बड़े पत्थरों से अटा पड़ा था. मैं एक पत्थर पर बैठ गया और हिलोरें मारते समुद्र को एकटक निहारने लगा । समुद्र की लहरें किनारे तक आतीं और जो कुछ अपने साथ बहा कर लातीं वह सब किनारे पर पटक कर वापस लौट जातीं । मैं बहुत देर तक उन मचलती लहरों को देखता रहा । उन्हें देखते देखते मैं अपने ही खयालों में डूबने लगा । आज सुबह ही पिताजी का फोन आया था । माता पिता दिल्ली से अगले हफ्ते एक महीने के लिए मेरे पास आने वाले थे । मातापिता के आने की उसे खुशी थी । मैं हृदय से चाहता था कि मेरे मातापिता मेरे पास आएं । काम के बोझ के बावजूद मैं एक बार भी उन्हें अपने पास आने के लिए नहीं कह पाया, कारण कुछ खास भी नहीं था और न ही मेरे मातापिता अशिक्षित या गंवार थे ।

लेकिन मैं जानता था वे क्यों आ रहे थे । वे ना जाने कब से मुझ पर शादी के लिए दबाब बना रहे थे । पर मैं था जो इस बंधन से दूर ही रहना चाहता था । उधर दूसरी तरफ मेरे माता पिता झुकने तो तैयार नहीं थे, वह दोनों इसी सिलसिले में मुझ से बात करने आने वाले थे ।

कुछ देर बाद मैं बुझे मन से घर लौट आया ।

कुछ दिन बाद मेरे माता पिता मुझ से मिलने आ पहुंचे । मैं अपने माता पिता को एयरपोर्ट से लेकर घर आ गया । दिल्ली से मेरे लिए एक रिश्ता आया हुआ था, वह दोनों इसी सिलसिले में मुझ से बात करने आए थे । कुछ दिन बाद एक दिन मौका देख कर माँ ने पूछा ।

‘‘बेटा, गीता बहुत ही अच्छी लड़की है,’’ मां बोलीं, ‘‘तुम कब चलोगे उसे देखने?’’

‘‘किसी रविवार को चले चलेंगे,’’ मैं ने गोलमोल सा जवाब दिया ।

‘‘अगले रविवार को चलें?’’ ।

‘‘देखेंगे,’’ मैंने फिर टालने की कोशिश की ।

मेरे पिता अचानक गुस्से में बोले, ‘‘इस से तुम दिल्ली चलने को ‘हां’ नहीं कहलवा सकोगी क्योंकि आजकल यह बहुत बड़ा आदमी हो गया है ।

‘‘प्लीज पापा, बेकार की बातें न करें, मैं नाराज हो उठा ।

‘‘अपने बाप से बेकार की बहस मत करो, यहां क्या चल रहा है, इस की रिपोर्ट मुझ तक पहुंचती रहती है.’’

‘‘लोगों की गलत व झूठी बातों पर आप दोनों को ध्यान नहीं देना चाहिए.’’

मां ने पिताजी को चुप करा कर मुझे समझाया, ‘‘बेटे, सारी कालोनी तुम्हारे बारे में उलटी सीधी बातें कर रही है. इधर उधर आनाजाना बंद करो, बेटे, नहीं तो तुम्हारा कहीं रिश्ता होने में बड़ा झंझट होगा.’’

‘‘मां, मेरा किसी से मिलना जुलना गुनाह है क्या? मेरी जानपहचान और बोलचाल सिर्फ चंद गिने चुने लोगों से है, मैं सब के साथ खूब हंसता बोलता हूं.’’

अपने झूठ पर खुद मुझे ऐसा विश्वास पैदा हुआ कि सचमुच ही मारे गुस्से के मेरा चेहरा लाल हो उठा ।

मुझे कुछ देर और समझाने के बाद कुछ दिन बाद मां पिताजी को ले कर दिल्ली चली गईं । उनके जाने के काफी समय बाद तक मैं बेचैन व परेशान रहा ।

मैं दिल्ली के एक संभ्रांत परिवार का लड़का हूँ । मुंबई में नौकरी करते हुए २ साल हो चुके थे । आज मेरे पास खुद की कार थी ।

जैसे ही मैं ऑफिस पहुंचा, मैंने रिसेप्शन पर एक लड़की को इंतजार करते देखा । मैंने उचटती निगाह से उसे देखा और आगे बढ़ कर अपने केबिन में आ गया । कुछ देर बार वही लड़की जिसका नाम शीतल था, मेरे कमरे में दाखिल हुई ।

शीतल पर पहली नजर पड़ते ही मेरे दिल ने कहा, वाह ! क्या शानदार व्यक्तित्व है । उस के सुंदर चेहरे पर आंखों का विशेष स्थान था । उस की बड़ी बड़ी आंखों में ऐसी चमक थी कि सामने वाले के दिल को छू ले । वह मेरे दोस्त अमर की पत्नी रेखा भाभी के साथ हमारी बहुराष्ट्रीय कंपनी में इंटरव्यू देने आई थी । रेखा भाभी के पिता, शीतल के पिता के अच्छे दोस्त थे । मेरी सिफारिश पर उसे नौकरी जरूर मिल जाएगी, ऐसा आश्वासन दे कर रेखा उसे मेरे पास लाई थी ।

इंटरव्यू देते समय शीतल थोड़ा भावुक सी हो गयी, ‘‘सर, मुझे नौकरी की सख्त जरूरत है । आप मेरी सहायता कीजिए, प्लीज,’’ इस तरह से प्रार्थना करते हुए शीतल की आंखों में एकाएक आंसू छलक आए ।

अब तक शीतल ने मेरे दिल में अपनी खास जगह बना ली थी । मेरे मन ने कहा कि मैं भविष्य में उस से संपर्क बनाए रखूं ।

‘‘मैं पूरी कोशिश करूंगा कि आप का काम हो जाए । इस कागज पर आप जरूरी ब्योरा लिख दें,’’ मैंने पैड और पेन उसे पकड़ा दिया ।

करीब 10 मिनट बाद शीतल रेखा भाभी के साथ वापस चली गई, लेकिन इन कुछ मिनटों में उस ने मेरा दिल जीत लिया था ।

शीतल को क्लर्क की नौकरी दिलाना मेरे लिए कठिन काम नहीं था । करीब 10 दिन बाद मैं उस की नियुक्ति की अच्छी खबर ले कर शाम को उस के घर पहुंच गया ।

वहां मेरी मुलाकात उस के पति राजन, सास दुर्गा देवी व 4 वर्षीय बेटे राहुल से हुई । शीतल की नियुक्ति की खबर सुन घर का माहौल खुशी से भर गया ।

शीतल के घर की हर चीज इस बात की तरफ इशारा कर रही थी कि वे लोग आर्थिक रूप से संपन्न नहीं थे । राजन बातूनी किस्म का इनसान था । उस की बातों से यह भी मालूम हो गया कि राजन एक प्राइवेट कंपनी में काम करता था, लेकिन उस की शेयर मार्किट में बहुत दिलचस्पी थी ।

कुछ देर बाद राजन मुंह मीठा कराने के लिए बाजार मिठाई लेने चला गया । उसी समय मैंने तब आग्रह कर के शीतल को अपने सामने बैठा लिया ।

अपनी सास की मौजूदगी में वह ज्यादा नहीं बोल रही थी । उस से पूछे गए मेरे अधिकतर सवालों के जवाब उस की सास ने ही दिए ।

बातों बातों में मुझे इस परिवार के बारें में काफी जानकारी मिली । राजन एक प्राइवेट कंपनी में काम करता था । उस की पगार अच्छी थी, फिर भी वे लोग भारी कर्जे से दबे हुए थे । शेयर मार्किट में राजन ने बारबार घाटा उठाया, पर बहुत अमीर बनने की धुन के चलते इस लत ने अब तक उस का पीछा नहीं छोड़ा था ।

‘‘सर, आप की कृपा से मुझे नौकरी मिली है और मैं आप का यह एहसान कभी नहीं भूलूंगी । अब दो वक्त की रोटी और अपने बेटे राहुल की पढ़ाई का खर्च मैं अपने बलबूते पर उठा सकूंगी,’’ शीतल की बड़ी बड़ी आंखों में मुझे अपने लिए सम्मान के भाव साफ नजर आए ।

‘‘शीतलजी कोई बात नहीं, यह मेरा फ़र्ज़ था, और कुछ नहीं ,’’ अपनी आवाज को मैंने नाटकीय रूप से सख्त किया, पर मेरे होंठों पर मुसकराहट बनी रही ।

"प्लीज सर मुझे शीतलजी ना कहें सिर्फ शीतल ही कहें, आप इतनी बड़े ओहदे पर हैं, यह आप को शोभा नहीं देता", शीतल ने विनतीभरे गले से कहा ।

"ठीक है कोई बात नहीं, शीतल", मैंने कहा ।

‘‘मैं चाय नाश्ता लेकर अभी आती हूँ,’’ वह मुसकराई और फिर उठ कर रसोई की ओर चली गई ।

कुछ देर बाद बडे़ अच्छे माहौल में हम सब ने चाय नाश्ता किया । फिर मैं उन से विदा लेना चाहता था, पर ऐसा संभव नहीं हुआ क्योंकि बेहद अपनेपन के साथ आग्रह कर के शीतल ने मुझे रात का खाना खा कर जाने के लिए रोक लिया ।

उस शाम के बाद से मेरा उस घर में जाना नियमित सा हो गया । कुछ दिनों बाद रोहित के जन्मदिन की पार्टी में मैं शामिल हुआ । फिर दिवाली का त्योहार आया और शीतल ने मुझे घर खाने के लिए आमंत्रित किया । मैं छुट्टी वाले दिन उन के यहां कुछ न कुछ खाने पीने की चीज ले कर पहुंच जाता । एक बार मेरी कार में सब पिकनिक मना आए । धीरे धीरे इस परिवार के साथ मेरे संबंध गहरे होते चले गए ।

दफ्तर में चाय पीने के लिए मैं फोन कर के शीतल को अपने कक्ष में बुला लेता । ऐसा अकसर लंच के समय में होता । उस के साथ बिताया हुआ वह आधा घंटा मेरी रग रग में चुस्तीफुर्ती भर जाता ।

शीतल जैसी खूबसूरत और खुशमिजाज युवती के साथ सिर्फ मैत्रीपूर्ण संबंध रखना अब मेरे लिए दिन पर दिन कठिन होने लगा था । अगर मैं किसी कार्य में व्यस्त न होता तो वह मेरे खयालों में छाई रहती । हमारे संबंध दोस्ती की सीमा को लांघ कर कुछ और खास हो जाएं, यह इच्छा मेरे मन में लगातार गहराती जा रही थी ।

एक दिन अपने कक्ष में चाय पीते हुए मैंने शीतल से पूछा, ‘‘तुम्हें पता है शीतल मैं किस दिन को अपने लिए भाग्यशाली मानता हूं.’’

‘‘आप बताओगे नहीं तो मुझे कैसे पता चलेगा,’’ उस ने जवाब सुनने के लिए अपना ध्यान मेरे चेहरे पर केंद्रित कर लिया ।

‘‘जिस दिन तुम मेरे ऑफिस नौकरी के सिलसिले में आई थीं,’’ मैंने कहा ।

‘‘मेरे लिए तो वह यकीनन महत्त्वपूर्ण दिन था,’’ शीतल बोली, ‘‘पर आप क्यों उसे अपने लिए भाग्यशाली मानते हैं?’’

‘‘वह दिन मेरे जीवन में न आया होता तो आज मैं तुम्हारे जैसी अच्छी दोस्त कैसे पाता.’’

मेरे स्वर की भावुकता को पहचान कर शीतल नजरें झुका कर फर्श को निहारने लगी ।

‘‘तुम मेरी अच्छी दोस्त हो न, शीतल?’’ यह सवाल पूछते हुए अपने गले में मैंने कुछ अटकता सा महसूस किया ।

उस ने मेरी तरफ देख कर एक बार सिर हिला कर ‘हां’ कहा और फिर से नीचे फर्श देखने लगी ।

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‘‘दुनिया वाले कुछ न कुछ गलत हमारे संबंध में देर सवेर जरूर कहेंगे, पर उस कारण तुम मुझ से दूर तो नहीं हो जाओगी?’’ मैंने व्याकुल भाव से पूछा ।

‘‘जब हमारे दिलों में पाप नहीं है तो लोगों की बकवास को हम क्यों अहमियत देंगे?’’ शीतल ने मजबूत स्वर में मुझ से उलटा सवाल पूछा, ‘‘बिलकुल नहीं देंगे.’’

मैंने अपना दायां हाथ बढ़ा कर उस के हाथ पर रखा और उस की आंखों में आंखे डाल कर बोला, ‘‘तुम मुझे अपना समझ कर हमेशा अपने दुखदर्द मेरे साथ बांट सकती हो.’’

‘‘थैंक्स,’’ उस के होंठों पर उभरी छोटी सी मुसकान मुझे अच्छी लगी ।

उस के हाथ पर मेरी पकड़ थोड़ी मजबूत थी. उस ने अपना हाथ आजाद करने का प्रयत्न किया, पर असफल रही । कुछ घबराए से अंदाज में उस ने मेरे चेहरे पर खोजपूर्ण दृष्टि डाली ।

मैं बड़े प्यार से उस का चेहरा निहार रहा था । मेरी आंखों के भाव पढ़ कर उस के गोरे गाल अचानक गुलाबी हो उठे ।

मैं उसे चाहता हूं, यह बात उस दिन शीतल पूरी तरह से समझ गई । उस दिन से हमारे संबंध एक नए आयाम में प्रवेश कर गए ।

जिस बीज को उस दिन मैंने बोया था उसे मजबूत पौधा बनने में एक महीने से कुछ ज्यादा समय लगा ।

‘‘हमारे लिए दोस्ती की सीमा लांघना गलत होगा, सर राजन को धोखा दे कर मैं गहरे अपराधबोध का शिकार बन जाऊंगी.’’

जब भी मैं उस से प्रेम का इजहार करने का प्रयास करता, उस का यही जवाब होता ।

शीतल को मेरे प्रस्ताव में बिलकुल रुचि न होती तो वह आसानी से मुझ से कन्नी काट लेती. नाराज हो कर उस ने मुझ से मिलना बंद नहीं किया, तो उस का दिल जीतने की मेरी आशा दिनोदिन बलवती होती चली गई ।

वह अपने घर की परिस्थितियों से खुश नहीं थी । राजन का व्यवहार, आदतें व घर का खर्च चलाने में उस की असफलता उसे दुखी रखते । मैं उस की बातें बड़े धैर्य से सुनता । जब उस का मन हलका हो जाता, तभी मेरी हंसी मजाक व छेड़छाड़ शुरू होती ।

मैंने उस के जन्मदिन के मौके पर एक सुंदर साड़ी उपहार में दी, तो वह घबराए लहजे में बोली, ‘‘नहीं, यह सब ठीक नहीं है । यह सुनकर मैं पीछे हट गया ।

जब से में शीतल के संपर्क में आया था मैं तनावमुक्त व प्रसन्न रहता । शीतल ही नहीं बल्कि उस के घर के बाकी सदस्य भी मुझे अच्छे लगने लगे । मैं भी अपने को उन के घर का सदस्य समझने लगा ।

मैं शीतल के घर वालों की जरूरतों का ध्यान रखता । कभी राजन को रुपए की जरूरत होती तो शीतल से छिपा कर दे देता । मैंने शीतल की सास के घुटनों के दर्द का इलाज अच्छे डाक्टर से कराया । उन्हें फायदा हुआ तो उन्होंने ढेरों आशीर्वाद मुझे दे डाले ।

इन दिनों मैं अपने को बेहद स्वस्थ, युवा, प्रसन्न और भाग्यशाली महसूस करता. शीतल ने मेरी जिंदगी में खुशियां भर दीं ।

दूसरी और मेरे माता पिता मुझ पर लगातार दबाब डाल रहे की मैं उनकी पसंद की लड़की से शादी कर लूँ । पर मैंने फिर टालने की कोशिश की । शाम के समय पिताजी ने फिर फ़ोन किया । बातें करते करते एकाएक मेरे पिता अचानक गुस्से में बोले, ‘‘उफ़, इससे कोई भी ‘हां’ नहीं कहलवा सकता क्योंकि आजकल इस के सिर पर उस शीतल नाम की लड़की का जनून सवार है.’’

‘‘प्लीज पापा, बेकार की बातें न करें, शीतल से मेरा कोई गलत रिश्ता नहीं है,’’ मैं नाराज हो उठा ।

‘‘बेटे अपने बाप से झूठ मत बोलो, यहां क्या चल रहा है, इस की रिपोर्ट मुझ तक पहुंचती रहती है.’’ पिताजी बोले ।

‘‘लोगों की गलत व झूठी बातों पर आप दोनों को ध्यान नहीं देना चाहिए.’’ मैं गिड़गिड़ाया ।

फ़ोन पर मां ने पिताजी को चुप करा कर मुझे समझाया, ‘‘बेटा, सारी कालोनी शीतल और तुम्हारे बारे में उलटी सीधी बातें कर रही है । तुम उसका यहां आनाजाना बंद करो, बेटे, नहीं तो तुम्हारा कहीं रिश्ता होने में बड़ी दिक्कत होगी.’’

‘‘मां, किसी से मिलना जुलना गुनाह है क्या? मेरी जान पहचान और बोलचाल सिर्फ शीतल से ही नहीं है, मैं उस के पति और उस की सास से भी खूब हंसता बोलता हूं.’’ ।

इस दौरान गुस्से के कारण मेरा चेहरा लाल हो उठा । कुछ देर बाद पिताजी शांत हो गए और फोन काट दिया ।

उन के जाने के काफी समय बाद तक मैं बेचैन व परेशान रहा । फिर शाम को जब मैंने शीतल से फोन पर बातें कीं तब मेरा मूड कुछ हद तक सुधरा ।

शीतल को ले कर मेरे संबंध सिर्फ मां पिताजी से ही नहीं बिगड़े बल्कि मेरे दोस्त अमर और उस की पत्नी रेखा के चेहरे पर भी अपने लिए एक खिंचाव महसूस किया ।

जब शीतल के माता पिता ने मुझ से इस बारे में चर्चा की तो मैं शर्मिंदा हो गया । लेकिन शीतल ने सब संभाल लिया । ‘‘मम्मी, पापा, इनके कारण आज तुम्हारी बेटी इज्जत से अपनी घरगृहस्थी चला पा रही है । राहुल भी इनको बहुत प्यार करता है । राजन उन की बेहद इज्जत करते हैं । मेरी सास उन्हें अपना बड़ा बेटा मानती हैं. अगर हमारे बीच गलत अवैध संबंध होते तो उन्हें मेरे घर में इतना मान सम्मान नहीं मिलता. आप दोनों अपनी बेटी की घरगृहस्थी की सुख शांति के लिए प्रार्थना करो, न कि लोगों की बकवास की,’’ शीतल के ऐसे भावुक जवाब ने उस के मातापिता की बोलती एक बार में ही बंद कर दी ।

हकीकत तो यह है की शीतल की वजह से मैं अपने घर वालों से कटा सा रहने लगा । आफिस के सहयोगियों या पड़ोसियों के साथ खाली समय में उठना बैठना भी मैं ने पहले ही कम कर दिया था । किसी से फालतू बात कर के मैं उसे शीतल व अपने बारे में कुछ पूछने या कहने का मौका नहीं देना चाहता था । इस तरह सामाजिक दायरा घटते ही मैं धीरेधीरे अजीब से असंतोष, तनाव व खीज का शिकार बनने लगा ।

जब भी में शीतल के नजदीक आने की कोशिश करता तो उदास लहजे में शिखा जवाब देती, ‘‘हम दोनों को सामाजिक कायदे कानून का ध्यान रखना ही होगा । अपने पति व सास को छोड़ कर सदा के लिए आप के पास आ जाने की हिम्मत मुझ में नहीं है । फिर मेरा ऐसा कदम बेटे रोहित के भविष्य के लिए ठीक नहीं होगा और उस के हित की फिक्र मैं अपनी जान से ज्यादा करती हूं.’’

‘‘शीतल, मैं तुम्हारे मनोभावों को समझता हूं, देखो ना, तकदीर ने मेरे साथ कैसा मजाक किया है । तुम्हें मैं बहुत प्रेम करता हूं, पर तुम सदा के लिए मेरी नहीं हो सकती हो । जब कभी इस तरह की बातें सोचने लगता हूं तो मन बड़ा अकेला, उदास और बेचैन हो जाता है.’’

जो बात दिमाग में बैठ जाए फिर उसे भुलाना या निकाल कर बाहर फेंकना बड़ा कठिन होता है. शीतल मेरे दिल के बहुत करीब थी, फिर भी मेरे अंदर का असंतोष व बेचैनी बढ़ती ही गई ।

राहुल के जन्म की 5वीं सालगिरह पर मेरे असंतोष का घड़ा पूरा भर कर एक झटके में फूट गया ।

इत्तफाक से जन्मदिन के कुछ रोज पहले राजन को स्टाक मार्किट से अच्छा फायदा हुआ. तड़क भड़क से जीने के शौकीन राजन ने फौरन राहुल के जन्मदिन की पार्टी धूमधाम से मनाने का फैसला कर लिया ।

उस दिन घर के आगे टेंट लगा । हलवाई ने खाना तैयार किया । डी.जे. सिस्टम पर बज रहे गानों की धुन पर खूब सारे मेहमान थिरकने लगे । कम से कम 100 - 150 लोग वहां जरूर उपस्थित रहे होंगे. रोहित उस दिन स्वाभाविक तौर पर सब के आकर्षण का केंद्र बना । उस के साथ घूमते हुए शीतल व राजन ने इतनी अच्छी पार्टी देने के लिए खूब वाहवाही लूटी ।

मैं एक तरफ उपेक्षित सा बैठा रहा । लेकिन शीतल को फुर्सत नहीं मिली, मेरे साथ चंद मिनट भी गुजारने की. शायद मेरे साथ हंस बोल कर वह अपने करीबी रिश्तेदारों को बातें बनाने का मौका नहीं देना चाहती थी ।

उस बड़ी भीड़ में मैं अपने को अकेला, उदास व उपेक्षित सा महसूस कर रहा था । मैं पार्टी का बिलकुल भी मजा नहीं ले सका ।

मेरा मन एक तरफ तो मांग कर रहा था कि शीतल को मेरे पास आ कर मेरा भी ध्यान रखना चाहिए था । उस के परिवार की हंसीखुशी में मेरा योगदान कम नहीं था. दूसरी तरफ मन शीतल के पक्ष में बोलता । मैं उस का प्रेमी जरूर था पर यह कोई भी समझदार स्त्री खुलेआम अपने करीबी लोगों के सामने रेखांकित नहीं कर सकती ।

मैं जब इस तरह की कशमकश से तंग आ गया तो बिना किसी को बताए घर चला आया ।

उस रात मुझे बिलकुल नींद नहीं आई । जिस ढर्रे पर मेरी जिंदगी चल रही थी उस से गहरा असंतोष मेरे दिलोदिमाग में पैदा हुआ था ।

मेरी सारी रात करवटें बदलते गुजरी पर सुबह मन शांत था । पिछली परेशानी भरी रात के दौरान मैंने अपनी जिंदगी से जुड़े कई महत्त्वपूर्ण निर्णय लिए थे ।

अगले दिन जब शीतल मेरे पास आई । मेरे गंभीर चेहरे को देख कर चिंतित स्वर में बोली, ‘‘क्या आप की तबीयत ठीक नहीं है?’’

‘‘मैं ठीक हूं,’’ मैंने उसे अपने सामने बैठने का इशारा किया.

‘‘कल पार्टी में किसी ने कुछ गलत कहा? गलत व्यवहार किया?’’ वह परेशान हो उठी ।

‘‘नहीं, ऐसी कोई बात नहीं हुई.’’

‘‘फिर यों बुझेबुझे से क्यों लग रहे हो?’’

‘‘रात को ठीक से सो नहीं पाया.’’

‘‘किसी बात की परेशानी थी?’’

‘‘हां, मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रहा था, शीतल, कुछ जरूरी बातें करनी हैं मुझे तुम से.’’

‘‘कहो.’’

मैंने कुछ लम्हों की खामोशी के बाद भावहीन स्वर में उसे बताया, ‘‘मैं आज दिल्ली वाली उस लड़की को देखने जा रहा हूं जिस का मेरे लिए रिश्ता आया है.’’

‘‘मैं तो हमेशा आप को दिल्ली जाने की सलाह देती रही हूं.’’

‘‘ शीतल, मैं खुद नहीं जाता था क्योंकि तुम्हारे अलावा किसी और स्त्री को अपनी जिंदगी में प्रवेश देना मुझे गलत लगता था…वैसा करना उस दिल्ली वाली लड़की के साथ धोखा करना होता.’’

‘‘क्या अब आपने मुझे अपने दिल से निकालने का फैसला कर लिया है?’’ यह कहते कहते शीतल की आंखों में आंसू छलक आए ।

‘‘ शीतल तुम मेरी बात को समझने की कोशिश करो, प्लीज,’’ मैंने अपनी आवाज को कमजोर नहीं पड़ने दिया, ‘‘देखो, तुम्हारी घर गृहस्थी सदा तुम्हारी रहेगी. मैं चाह कर भी उस का स्थायी सदस्य कभी नहीं बन सकता हूं. तुम्हारा नाम राजन के साथ ही जुड़ेगा, मेरे साथ नहीं ।

‘‘यह बात कल रात मुझे बिलकुल साफ नजर आई.

‘‘चोरी का मीठा फल खाने का अपना मजा है…तुम्हारे प्यार को मैं बहुत कीमती व महत्त्वपूर्ण मानता रहा हूं. लेकिन आज मैं थक गया हूं, अकेले इस घर में रातें बिताते हुए… अब मैं सिर्फ फल खाना नहीं बल्कि अपनी छोटी सी बगिया बनाना चाहता हूं जिसे मैं अपना कह सकूं…जिसे फलता फूलता देख मैं ज्यादा खुशी व सुकून महसूस कर सकूं.’’

‘‘मैंने आप को अपने पास आने से कभी नहीं रोका,’’ शीतल भावुक स्वर में बोली, ‘‘आप जरूर शादी कर लें । आप की इच्छा होगी तो मैं खुशीखुशी आप की जिंदगी में प्रेमिका बन कर बनी रहूंगी.’’

‘‘नहीं, शीतल वैसा करना भी बिलकुल गलत होगा,’’ मैंने तीखे स्वर में उस के प्रस्ताव का विरोध किया ।

‘‘तब क्या आज आप मुझे हमेशा के लिए अलविदा कह रहे हैं?’’ शीतल रोने लगी ।

भीगी पलकें और भारी मन से मैं इतना भर कह सका, ‘‘आई एम सारी, शीतल, दोस्ती की सीमाएं लांघ कर तुम्हें अपनी प्रेमिका नहीं बनाना चाहिए था मुझे. मैं सिर्फ तुम्हारे मन में जगह बना कर रखता तो आज मेरी भावी शादी के कारण हमें एकदूसरे से दूर न होना पड़ता.’’

शीतल उठ कर खड़ी हो गई और थके से स्वर में बोली, ‘‘सर, आप जैसे नेक इनसान को कभी भुला नहीं पाऊंगी. पर शायद आप का फैसला बिलकुल सही है. मैं चलती हूं.’

और में अपने मोहबत के ताजमहल भरभरा का ढहते हुए देखता रहा .....

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